JLF 2025: क्या मातृभाषा से दूर होना सही है? जावेद अख्तर ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मातृभाषा को लेकर क्या कहा चलिए आपको बताते हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इस बार साहित्यकार और गीतकार ‘जावेद अख्तर’ ने अपने ‘ज्ञान सीपियां’ सेशन के बीच मातृभाषा का क्या महत्व है उसपर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि आजकल ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी मीडियम में पढ़ रहे हैं, लेकिन अगर हम अपनी मातृभाषा से दूर हो जाएंगे तो यह ठीक नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि हम अंग्रेजी की अहमियत को लेकर कोई इनकार नहीं कर रहे, लेकिन अपनी भाषा से जुड़ना और ज्यादा जरूरी है।

मातृभाषा की अनदेखी नहीं होनी चाहिए

जावेद अख्तर ने भारतीय जुबान और कहावतों के महत्व पर भी बात की। उन्होंने कहा, "हमारी भाषा में जो कहावतें हैं, वे ‘ज्ञान की हीरे’ हैं। कई पुराने दोहे आज भी उतने ही मायने रखते हैं, जैसे कुछ दिन पहले की बात हो।" उनका कहना था कि हमें अपनी भाषा और संस्कृति को संभाल कर रखना चाहिए, क्योंकि यही हमारी जड़ें हैं। इस सेशन में ‘साहित्यकार और समाजसेवी सुधा मूर्ति’ और एक्टर ‘अतुल तिवारी’ भी मौजूद थे। इन दोनों ने भी अपनी बात रखी और मातृभाषा के महत्व पर चर्चा की। 

भारतीय जुबान और कहावतों का महत्व

इससे पहले, गुरुवार सुबह ‘राजस्थानी परंपरा’ के साथ फेस्टिवल का उद्घाटन किया गया। यह ‘जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल’ का 18वां संस्करण है और इस साल ‘600 से ज्यादा स्पीकर्स’ इसमें शामिल हो रहे हैं। इस साहित्यिक मंच पर कई किताबें भी लॉन्च होंगी। 

इस सेशन में जावेद अख्तर ने कहा, "दोहे लिखने का विचार मेरे दोस्त ‘विक्रम मेहरा’ का था। वे एक बड़े क्रिएटिव इंसान हैं। उनका मानना था कि दोहा एक खास तरीका है, जिसे लोग अब नहीं समझते। अगर इसे लिखा जाएगा, तो यह बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुँच पाएगा।"

जावेद अख्तर ने आगे कहा कि आजकल के ‘शिक्षा प्रणाली’ में बच्चों को अपनी मातृभाषा से जोड़ने की कोशिश ही नहीं की जाती है, और यह एक बेहद बड़ी कमी है। उन्होंने कहा, "अगर बच्चे अपनी भाषा से कट जाएंगे, तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपनी जड़ें काट दीं हों । इसलिए बच्चों को अपनी जुबान से जोड़ना बहुत जरूरी है, और बिना अंग्रेजी का मजाक बनाए।

ये भी पढ़ें:- JLF 2025: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की हुई शुरुआत, कला, संस्कृति, नोबेल विजेताओं सहित इन हस्तियों का होगा समागम