Meriyu Tradition: देश भर में दीवाली के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें दीपक जलाकर भगवान राम का स्वागत करते हैं। सभी शहरों की अपनी अलग -अलग परंपराएं है, लेकिन उन सब में से राजस्थान एक ऐसा राज्य है। जहां हर एक शहर, समुदाय की अपनी लग परंपरा होती है।

परंपरा की मान्यता

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में दिवाली के दूसरे दिन मेरियू की परंपरा को निभाया जाता है। इस परंपरा में दूल्हा दूल्हन दोनों अपना योगदान देते है। इस परंपरा को आज भी बासवाड़ा के लोगो द्वारा उसी जोश के साथ मनाया जा रहा हैं। यहां निवास करने वाले लोगों का मानना है कि इस परंपरा को निभाए जाने से नवविवाहित जोड़ो का जीवन खुशहाल रहेता हैं।

चौखट पर खड़ा होता है दूल्हा

इस परंपरा को दिवाली के अगले दिन नव विवाहित  दूल्हा  दूल्हन द्वारा निभाया जाता है। इस परंपरा में दूल्हे के हाथ में मेरियू देकर अपने घर चौखट की चौखट पर खड़ा किया जाता है और दुल्हन के साथ अन्य रिश्तेदार भी चौखट पर ही खड़े रहते है। जिसमें परिवार के एक सदस्य द्वारा साथ तेल लाया जाता है और उसके बाद उस तेल के दुल्हन के हाथों में थमा दिया जाता है। फिर दुल्हन अपने पति  के हाथ में लिए मेरियू में तेल भरकर इस रस्म को पूरा करती है।

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क्या है मेरियू?

मेरियू दीपक जैसी आकृति का ही होता है, जिसको बनाने में गन्ने के छोटे छोटे  टुकड़े करके  सूखा नारियल के पेंदे में छेद करके गन्ने के ऊपर वाले हिस्से से जोड़ा जाता है। इसके बाद दोनों को गोबर से लिप कर अच्छी तरह से सुखाकर मेरियू को बनाया जाता है। फिर रुई की बत्ती में तेल भरकर इसे दीपक की तरह जलाया जाता है। 

मेरियू परंपरा की खासियत

इस परंपरा की सबसे खास बात ये है कि इस परंपरा में परिवार के लोगो के साथ आसपास के सभी लोगों द्वारा इस परंपरा में शामिल होते है, जिससे रौनक और ज्यादा बढ़ जाती है। यहां के लोगों द्वारा इससे लम्बे समय से मनाया जा रहा है, इस परंपरा को लेकर यहां की के लोगों की आस्था जुड़ी ही हैं।