Dapa pratha: दहेज की लेन-देन की प्रथा भले ही देश में कानूनी तौर पर प्रतिबंध है लेकिन इसके बावजूद पुलिस थानों में कई दहेज को मुकदमें दर्ज किए जाते हैं। लेकिन राजस्थान के आदिवासी समाज में एक ऐसी परंपरा चलती आ रही है जो दहेज प्रथा से एक दम विपरीत है। आपको जानकार हैरानी होगी कि आदिवासी समाज में दूल्हा पक्ष की ओर से दुल्हन के परिवार को 'दापा' देने की परंपरा चलती आ रही है। 

क्या है दापा प्रथा?
राजस्थान के आदिवासी समुदायों में दापा प्रथा कई सदियों से चलती आ रही एक सांस्कृतिक रीति है, जो विवाह समारोहों के दौरान देखी जाती है। यह प्रथा दहेज लेन-देन के विपरीत है। साथ ही यह समाज में लैंगिक समानता व सामुदायिक एकजुटता को पेश करती है। इस प्रथा में दूल्हा दुल्हन को शादी के समय विभिन्न श्रेणियों में शुल्क (टैक्स) देता है, जो सभी सदस्यों के बीच में वितरीत किया जाता है।

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इस प्रथा से आदिवासी समाज में लैंगिक समानता व सामुदायिक सहयोग बढ़ता है। इसमें कई प्रकार के शुल्क शामिल होते हैं, जैसे प्रवेश शुल्क, फला परिवार, गमेती, बुआ आदि। आदिवासी संस्कृति यह अनूठी प्रथा दहेज प्रथा से विपरीत है। इस प्रथा से समाज के लोगों में सामुदायिक सहयोग बढ़ता है, साथ ही वैवाहिक संबंधों को भी  मजबूती मिलती है। 

दहेज प्रथा और दापा प्रथा में अंतर 
दापा प्रथा और दहेज प्रथा में मुख्य अंतर यह है कि दापा प्रथा में दूल्हा दुल्हन को शुल्क देता है, वहीं दहेज प्रथा में दुल्हन पक्ष दूल्हा पक्ष को धन, संपत्ति या सामान देते है। दापा प्रथा एक ऐसी परंपरा है जो सामाजिक सम्मान और सहयोग का प्रतीक है। वहीं दहेज प्रथा कई सालों से लैंगिक असमानता और आर्थिक शोषण को बढ़ावा देती आ रही है। दापा प्रथा आदिवासी समाज की वो विरासत है जो समाज में लैंगिक समानता और सामुदायिक सहयोग को आगे बढ़ने में मदद करती है।