Rajasthan Folk Drama: राजस्थान में कला और संस्कृति का विस्तार देखने को मिलता है, जो राजस्थान की धरोहर है। इन्हीं धरोहरों में से एक कला लोकनाटक है, जिन्होंने राजस्थान को एक अलग पहचान प्रदान की है। आपने अलग-अलग राज्यों के नाटक देखे होंगे। इन लोकनाटकों को अधिकतर ग्रामीण जनजाति के लोगों द्वारा निभाया जाता है। 

1. कुचामनी लोकनाटक

कुचामनी लोकनाटक जिसे ख्याल भी कहा जाता है, यह राजस्थान के प्रसिद्ध नाटको में से एक है, जो मुख्य रूप से राजस्थान की आदिवासी जनजाति के परिवेश और परंपरा को दर्शाते हैं। इस कुचामनी लोकनाटक के प्रवर्तक लच्छीराम हैं, उन्होंने ही इस लोकनाटक की शुरुआत की थी। इस लोकनाटक का मुख्य कलाकार उगमराज, वंशीलाल चुई है, जो ऐसे कुचामनी ख्यालों को प्रस्तुत करते हैं। इस कुचामनी लोकनाटक के प्रवर्तकता लच्छीराम की मुख्य कहानी चांद नीलगिरी, मीरा मंगल तथा राव रिड़मल है।

कुचामनी लोकनाटक की प्रमुख विशेषता 

इस लोकनाटक की प्रमुख विशेषताओं में पहली विशेषता ये है कि इन लोकनाटकों में लोकगीतों की प्रधानता है। इन लोकनाटकों में सभी पात्रों की भूमिका पुरूष निभाते हैं। महिलाओं के किरदारों को भी पुरूषों द्वारा ही निभाया जाता है। इस नाटक को प्रस्तुत करने वाले समुदाय के लोगों द्वारा स्थानिय भाषा में सामाजिक विषयों पर व्यंग्य किया जाता है, इस नाटक को प्रदर्शित करने वाले लोगों द्वारा लोक वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल भी किया जाता है।

जैसे :- शहनाई, ढोलक, सारंगी।

2. शेखावटी  लोकनाटक

शेखावाटी लोकनाटक चिड़ावा ख्याल में शेखावाटी इलाके के रहने वाले नानूराम के शिष्य दूलिया राणा इस किरदार को निभाने के लिए काफी लोकप्रिय हैं। इनके गीतमय संवाद सबके ख्यालों को साहित्यिक तथा रंगमंच के अनुकूल बनाते हैं। दूलिया राणा परिवार के लोग ही इन लोकनाटकों को प्रदर्शित करते हैं।

इस लोकनाटक के मुख्य खिलाड़ी चिड़ावा निवासी नानूराम व उनके शिष्य दुलिया राणा है, इसके साथ ही इस नाटक में हरीचन्द, जयदेव कलाली, ढोला मरवण, भर्तृहरि, हीर राँझा और आल्हादव इन प्रमुख कहानियों के किरदारो को निभाया जाता हैं। 

शेखावाटी नाटक की प्रमुख विशेषताएं

इस नाटक में सम्प्रेषणीय शैली के माध्यम से भाषा में शब्दों का चयन कर, मुद्रा में गीतों को गाकर लोगों के बीच विचारों, भावनाओं, सूचनाओं, और संदेशों का आदान-प्रदान करके किया जाता है। इस नाटक में हारमोनियम, सारंगी, शहनाई, बाँसुरी, नक्कास तथा ढोलक का प्रयोग कर नाटक को प्रस्तुत किया जाता है।

3.जयपुरी लोकनाटक

इस लोकनाटक का प्रचलन जयपुर एवं आस-पास के कस्बों में है, जिसमें गुणीजनखाना के कलाकार भाग लेते थे। इस लोकनाटक में किरदारों को बखूबी से निभाया जाता है। क्योंकि हमने एक लोकनाटक में पढ़ा था कि उसमें सभी किरदार चाहे वो स्त्री का हो या पुरूष का, सभी पुरूषों द्वारा ही निभाया जाता है, लेकिन जयपुरी लोकनाटक में महिलाओं के पात्रों की भूमिका महिलाओं द्वारा ही निभाई जाती है।  

जयपुरी लोकनाटक की विशेषता 

जयपुरी ख्याल की शैली मुक्त तथा लचीली है इसके साथ ही इसमें नये प्रयोगों की अत्यधिक संभावनाएं भी है। जयपुरी नाटक में समाचार पत्रों, कविता, संगीत, नृत्य, गीत व अभिनय का सुन्दर समावेश देखने को  मिलता है। जयपुरी लोकनाटक के लोकप्रिय ख्याल- कान-गूजरी, जोगी-जोगन, मियाँ-बीबू, पठान, रसीली तम्बोलन आदि हैं। 

4. हेला लोकनाटक

हेला लोकनाटक दौसा के साथ सवाईमाधोपुर का भी प्रसिद्ध लोकनाटक है। इस लोकनाटक का हेला नाम एक शायर हेला की कविताओं से प्रेरित होकर रखा गया है। इस नाटक की शुरुआत बड़े नगाड़े को बजाकर की जाती है। इसके पश्चात नाटक के तीन पात्र सुमरनी, चढ़ाव व टेर द्वारा हेला दिया है। हेला एक राजस्थान का स्थानीय शब्द है, जिसके यहां के लोगों द्वारा जब किसी को बुलाना होता है, तब इसका उपयोग किया जाता है। 

इस लोकनाटक की प्रमुख विशेषताएं ये है कि इस लोकनाटक में जो आवाज दी जाती है, जिसे वहां की भाषा में हेला बोला जाता है। इस आवाज को काफी समय तक निकाला जाता है।
   
5.तुर्रा कलंगी लोकनाटक 

इस लोकनाटक के प्रवर्तक हिन्दू संत तुकनगरी थे, जिन्होनें इसकी शुरुआत की थी। इसके साथ ही इस लोकनाटक को मुस्लिम संत शाहअली के मुख्य केन्द्र सर्वश्रेष्ठ कलाकार सोनी जयदयाल, चेतराम, हमीद बेग, ताराचंद तथा ठाकुर ओंकारसिंह द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। 

तुर्रा कलंगी लोकनाटक के विचार

इस लोकनाटक में शिव-शक्ति संबंधी विचारों को लोगों तक पहुंचाने का मुख्य माध्यम काव्यमय रचनाएं है, जिन्हें दंगल के नाम से भी जाना जाता है। इसके कलाकार तुकनगीर भगवा व शाह अली हरे वस्त्र पहनकर इस नाटक की प्रस्तुति देते हैं।

तुर्रा कलंगी लोकनाटक की विशेषता 

यह गैर व्यावसायिक लोक नाट्य है, जिसे तुर्रा-कलंगी की शैली को माच का ख्याल भी कहते हैं। इसमें भी स्त्री पात्रों की भूमिका पुरूषों द्वारा ही निभाई जाती है, इसमें एक परंपरा को निभाया जाता है, जिसे मंच सज्जा के नाम से जानते हैं। इस लोकनाट्य का सबसे प्रमुख विशेषता ये है कि इस नाटक में दर्शक भी भाग ले सकते हैं।

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