Rajasthan Tradition: राजस्थान में लम्बे समय से ऐसी परंपराएं निभाई जाती हैं, जो बड़ी अनोखी हैं। जो राजा महाराजाओं के समय से चलती हुई आ रही हैं, यहां की सभी परंपराओं को किसी विशेष शुभ अवसरों पर ही निभाया जाता है। इन परंपराओं की वजह से ही राजस्थान को देश भर में जाना जाता है, इसलिए ये परंपरा यहां की धरोवर हैं।
500 साल पहले मनुहार की परंपरा
राजस्थान के नागौर जिले के मेवाड़ क्षेत्र के खींवसर किले में 500 साल पुरानी परंपरा को आज भी यहां के लोगों द्वारा निभाया जा रहा है, इस परंपरा को खींवसर किले के राजा महाराजाओं द्वारा निभाया जाता है।
इस परंपरा को निभाए जाने के पीछे का कारण ये था कि इससे उनके बीच के झगड़े दूर,आपसी विवाद का समझौता हो जाता था। इस परंपरा में राजाओं के द्वारा दूर के भाईयों और गांव वालो के मान-मनवार करने के लिए अफीम का उपयोग किया जाता था।
अफीम की जगह केसर का उपयोग
मनुहार की ये परंपरा राजशाही परिवारों में लम्बे समय से चलते हुए आ रही है, जो राजस्थान की सभ्यता को दर्शाती है। इस वजह से पहले भाईचारे की भावना बढ़ावा देने के लिए अफीम का उपयोग किया जाता था, लेकिन आज के लोगों को पता है कि उनकी ये परंपरा उनकी संस्कृति और एकता की भावना को दर्शाती है। इसलिए आज के सभ्य समाज के लोगों ने मनवार के लिए अफीम की जगह केसर को उपयोग करने लगे हैं।
केसर का पानी पिलाने की रस्म
मारवाड़ की इस परंपरा को होली दिवाली के शुभ अवसर पर ही निभाया जाता है। खींवसर गांव के खींवसर किले में ही 36 कौमों के लोगो द्वारा आपस में भाई चारे की भावना को बढ़ाने के लिए केसर के पानी को 3 बार हथेली भर करके पिलाया जाता है, जिसमें जब तक हथेली खाली ना हो जाए तब तक हाथ को हिलाया नहीं जाता है।
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