Rajasthan Mourning Traditions: राजस्थान में शोक मनाने हर समुदाय, जाति के अपने अलग तरीके है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी निभाते हुए आ रहे हैं। इन परंपराओं को लेकर यहां के लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई है। 

इन परंपराओ ने ही लोगों के मध्य राजस्थान के लिए एक नजरीया निर्धारित किया है, जिसकी वजह से लोग राजस्थान को जानते हैं। इन परंपराओं में कुछ परंपराएं ऐसी भी है, जिसने यहां के नकारात्मक रूप को दर्शाया हैं। 

महिलाएं की शोक परंपरा से दूर बहन- बेटियां

इस परंपरा में घर की महिलाओं 11 दिन रो कर मृतक के प्रति अपना दु:ख प्रकट किया जाता है। ये एक तरह की शोक परंपरा होती है, जिसमें घर की महिलाएं द्वारा कोई भी श्रृंगार नहीं किया जाता हैं। लेकिन इस परंपरा से घर की बहन बेटियों के दूर रखा जाता है, क्योकि इस परंपरा को मानने वाले लोग ये मानते है कि एक लड़की दो परिवार का हिस्सा होती है इसलिए इस परंपरा में घर की बहन- बेटियों को शोक परंपरा से दूर रखा गया हैं

केवल बेटियां ही करती है ये काम 

पगड़ी की रस्म को बड़े-बुर्जुग की मृत्यु पर ही पगड़ी की रस्म निभाई जाती हैं, जिसमें बड़े बेटे या भाई को पगड़ी बांधी जाती है। इसमें जिस व्यक्ति के पगड़ी बंधती है, उस व्यक्ति के लिए केवल घर की बेटी ही खाना बनाती है। 

ऐसा इसलिए क्योंकि घर में किसी की मृत्यु होने पर घर में अपवित्रता फैल जाती है, जिसे राजस्थान में सूतक कहा जाता है। उस वजह से केवल बेटी ही उनके लिए खाना बनाती है, क्योंकि शोक और सूतक की परंपरा का हिस्सा बेटियो को नही माना जाता हैं।

मौत के बाद पहले दिन नहीं बनता घर में खाना 

राजस्थान में किसी की मृत्यु होने पर दाह संस्कार के दिन घर में चुल्हा नही जलाया जाता है। मृतक के परिवार के लिए पड़ोसी और जान पहचान वाले खाना लाते है, क्योकि घर में शोक की परंपरा निभाई जाती है। जिसमें किसी भी तरह का काम नही किया जा सकता हैं।

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