Rajasthani Pagdi Importance: साफा को राजस्थानी संस्कृति में आत्मसम्मान का पर्यायवाची माना जाता है। हालांकि इसके कई कारण दिए जा सकते हैं। लेकिन जो कारण सबसे अधिक सटीक है वह यह है कि साफा उठे हुए सर का प्रतीक है। इसीलिए ये राजस्थानी लोगों की राजपूतानी शान को दर्शाने का काम करता है।

राजस्थान के इन साफों का रंग सिर्फ सुंदरता के दृष्टिकोण से नहीं होता है। बल्कि साफों के अलग-अलग रंगों की अपनी एक अलग-अलग पहचान होती है। आप किसी राजस्थानी व्यक्ति के साफे के रंग को देखकर उसे व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ पता लगा सकते हैं। जैसे कि वह व्यक्ति किसी समुदाय से आता है या वह व्यक्ति किस कार्यक्रम में जा रहा है।

केसरिया साफा : 

अगर बात केसरिया साफा की होती है तो यह शौर्य और वीरता को दर्शाता है। यह साफा पुराने जमाने में युद्ध के समय राजपूताने योद्धाओं द्वारा पहना जाता था। यह राजा महाराजाओं की वीरता और शौर्य गाथा को दर्शाता है। 

सफेद साफा : 

अगर कोई राजस्थानी सफेद साफा पहना है तो उसके दो अर्थ हो सकते हैं। पहले अर्थ यह हो सकता है कि वह व्यक्ति किसी शोक समारोह में हिस्सा लेने जा रहा हो। वहीं इसके विपरीत इसका एक दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि वह व्यक्ति बिश्नोई समुदाय से आता हो।

खाकी साफा : 

खाकी साफा को आमतौर पर गांव के बड़े बुजुर्गों द्वारा पहना जाता है। यह साधारण और शांत व्यक्तित्व को दर्शाने का कार्य करता है। खाकी साफा को बांधे हुए बड़े बुजुर्ग अपने शांत और साधारण व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। 

नीला और मेहरून साफा  

अगर बात किया जाए नीले और मैरून रंग के साफा की तो यह मुख्यतः संवेदनशील स्थलों पर पहने जाने वाला साफा होता है जो सहानुभूति को और संवेदनशीलता को दर्शाता है। 

बहुरंगा साफा : 

बहुरंगी साफा का संबंध सीधे तौर पर सांस्कृतिक समारोह और उत्सवों से है। हालांकि व्यापारी वर्ग के लोग इसे सामान्य दिनों में भी पहनते हैं। 

साफा से राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रदर्शन होता है। यह केवल एक वस्त्र नहीं बल्कि गौरव की निशानी है। शायद यही वजह है कि राजस्थानी लोग बहुत ही शान से इन साफों को पहनते हैं।

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