Erracotta Soil of Rajasthan: जब मेहनत ने हस्तकला को नया आयाम दिया, तब यह गांव की मिट्टी से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई। यह कहानी है राजस्थान के राजसमंद जिले के मोलेला की टेराकोटा (मिट्टी) कला की। मोलेला का एक परिवार 18 पीढ़ियों से मिट्टी को जीवन के रंगों में ढाल रहा है। इस कला में रची गई कृतियों में अतीत की भव्यता भी झलकती है। वर्तमान में बहादुरगढ़ में आयोजित हस्तशिल्प कला प्रदर्शनी में राजस्थान की यह कला भी प्रदर्शित की गई है। यहां साज-सज्जा की सामग्रियों से लेकर दीवार की टाइलों तक, सभी जगह टेराकोटा कला के नमूने देखने को मिलते हैं।
देश विदेश में मशहूर है यह कला
मोलेला टेराकोटा आर्ट के नाम से प्रसिद्ध यह कला न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी जगह बना चुकी है। मोलेला के कारीगर परिवार के सदस्य प्रशांत कुमार, जो 18वीं पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, बताते हैं कि इस कला के विकास में कितने वर्ष लगे, उन्हें ठीक से याद नहीं, लेकिन उनके दादा, पिता और अन्य परिवार के सदस्यों ने मिलकर पांच राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। उनके दादा मोहन लाल को इस कला के लिए पद्मश्री सम्मान मिला है। प्रशांत के पिता, जमना लाल, ने 'देव संग्रह' नामक छह फीट लंबी मिट्टी की कृति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है। इस परिवार के अन्य सदस्य, जैसे दिनेश चंद्र, राजेंद्र और लक्ष्मी लाल, को भी इस कला में राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है।
ऐतिहासिक स्थलों में दिखती है कृतियां
राजस्थान के इस परिवार ने टेराकोटा कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, जिसकी चमक हर जगह महसूस की जा सकती है। ऐतिहासिक स्थलों पर इस कला की कई उत्कृष्ट कृतियां देखी जा सकती हैं। उदयपुर का रेलवे स्टेशन इस कला का एक विशेष उदाहरण है, जिसे इसी परिवार ने सजाया है। यहां ग्रामीण जीवन से लेकर देवी-देवताओं के दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं। मिट्टी से बनी वस्तुएं और अन्य सजावटी सामग्री इस कला को अद्वितीय बनाती हैं। इसके साथ ही, जर्मनी, फ्रांस, जापान, अमेरिका और इजराइल जैसे देशों में भी यह कला अपनी पहचान बना रही है, और वहां इसकी कृतियों का निर्यात भी हो रहा है