Rajasthan Famous Sanganeri Print: सांगानेरी प्रिंट राजस्थान की एक लोकप्रिय प्रिंटिंग है, जिसे ब्लॉक प्रिंटिंग तकनीकों से तैयार किया जाता है। यह विशेष रूप से राज्य के दक्षिणी भाग में तैयार किया जाता है। इसकी शुरुआत सांगानेर नामक गांव से हुई है। इस कला का इतिहास तकरीबन 6 शताब्दी पुराना है। यह कला बुनकरों और कारीगरों में बेहद प्रसिद्ध है। सांगानेर के साथ-साथ राजस्थान के अन्य गांव जैसे बगरू, अकोला, बाड़मेर और जोधपुर में भी यह कला लोकप्रिय है।

इस प्रकार बनाई जाती है सांगानेर प्रिंटिंग

इस प्रिंटिंग को तैयार करने के लिए सबसे पहले कारीगर प्राकृतिक तरीकों से रंग तैयार करता है और फिर उस कपड़े पर डिजाइन उकेरता है। यह कला ना केवल भारत में प्रचलित है बल्कि देश-विदेश में भी इस प्रकार की प्रिंटिंग को खूब सम्मान दिया जाता है।

16वीं सदी से पहले शुरू हुई थी सांगानेरी प्रिंट

राजस्थान की मशहूर सांगानेरी प्रिंटिंग का इतिहास काफी पुराना है। इसकी शुरूआत तकरीबन 16वीं शताब्दी पहले हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक जब देश में मुगलों और मराठों के बीच युद्ध हो रहा था तब कई कारीगर और बुनकर गुजरात से राजस्थान पहुंच गए थे। इसके बाद उन्हें राजस्थान के सांगानेर में आश्रय मिला और उन्होंने वहां अपनी कारीगीरी का काम शुरू किया। इस प्रिंटिंग की खास बात यह थी कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए निर्यात वस्तुओं में से एक प्रमुख सामान बन  गया था।

सांगानेर प्रिंटिंग की डिजाइन

सांगानेर प्रिंटिंग में सबसे पहले एक रेखा से महीन बेल तैयार की जाती है। इस प्रिंटिंग में सैनिकों की एकता को दिखाया जाता है। इसे बनाने के लिए 2 बाय 3 इंज का वुड ब्लॉक इस्तेमाल होता है। पहले से अब तक इस प्रिंटिंग में काफी बदलाव देखे जा चुके हैं। पहले कारिगर केवल पतासे, झुले, फूल आदि डिजाइन बनाते थे। लेकिन अब समय के साथ-साथ कारिगरों की डिजाइनों में भी काफी बदलाव देखा गया है।