Udaipur jain temple: राजस्थान अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां के अलग-अलग धर्म और इनसे जुड़ी परंपराओं के बारे में लोगों को जानना, सुनना या पढ़ना काफी पसंद आता है। तो आज हम आपको राजस्थान के उदयपुर में स्थित प्रसिद्ध जैन धर्म के मंदिरों के बारे में बताते हैं और जानते हैं इन प्रसिद्ध मंदिरों की स्थापना किसने और कब करवाया था। वैसे दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म में से एक धर्म जैन धर्म आता है। इसे श्रमणों का धर्म भी कहां जाता है। इस धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थकर के रूप में जाने जाते हैं। 

रणकपुर जैन मंदिर 

रणकपुर मंदिर जैन धर्म के पांच प्रमुख स्थल में से एक है। यह दुनिया भर में जाना है। यह मंदिर उदयपुर से 95 किलोमीटर दूर पाली जिले के एक गांव रणकपुर में स्थित है। इसका स्थापना 15 वीं सदी में सेठ धारणा साह (एक व्यापारी) ने कराया था। जिन्होंने मेवाड़ पर राज भी किया था। इस मंदिर की  वास्तुकला और सुन्दरता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर में एक बड़ा 48000 वर्ग फीट तहखाना भी है। यहां सालों भर जैन धर्म के लोग आते रहते हैं। वैसे यह पर्यटक स्थल के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 

भांडासर जैन मंदिर

यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर में स्थित है। यह मंदिर अपनी दीवार चित्रकला के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 15 वीं सदी में भांडासा ओसवाल ने कराया था। जिसे 5वें तीर्थंकर सुमतिनाथ को समर्पित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के समय पानी के जगह 40,000 किलोग्राम घी का इस्तेमाल किया गया था। यह जैन मंदिर लाल बलूआ पत्थर से बना तीन मंजिला मंदिर है, जो कि अपने आकार और कलाकृतियों के लिए बहुत फेमस मानी जाती है। यहां हर साल जैन धर्म के लाखों लोग देश- विदेश से आते हैं। 

ऋषभदेव जैन मंदिर 

यह मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव  को समर्पित है जिन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के नाम पर रिखबदेव या ऋषभदेव के नाम से जाना जाता है। यह उदयपुर जिले से 65 किलोमीटर दूर धुलेव गांव में स्थित है, हालांकि धूवेल को ऋषभदेव के नाम से अभी जाना जाता है। ऋषभदेव को "केसरियाजी" से भी जाना जाता है, क्योंकि ये देवता को केसर यानि कि जैन धर्म में एक सामग्री होती है जिसे भेंट स्वरूप चढ़ाई जाती है। 

अजमेर जैन मंदिर  

अजमेर जैन मंदिर को सोनीजी की नसियां के नाम से भी जाता है। यह  मंदिर 19 वीं सदी के अंत 1865 में स्थापित किया गया था। इस मंदिर को ऋषभ (आदिनाथ) को समर्पित किया गया है। इस मंदिर के निर्माण बहुत ही कम समय में हो गया था। इस मंदिर के कक्ष में सोने की परत चढाया गया है। इसी वजह से लोग यहां लाखों के संख्या में आते है। यह मंदिर अजमेर में स्थित है।