Rajasthan Famous Fair: राजस्थान अपनी इतिहास के लिए सदैव याद रखा जाएगा। उसी इतिहास ने इस प्रदेश को कुछ ऐसा दिया है, जिसे लोग आज भी धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं। राजस्थान में वैसे तो घूमने के लिए एक से बढ़कर एक जगह है, इसके अलावा यहां कई ऐसे मेले भी लगते हैं, जिसे देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। आज हम आपको राजस्थान के ऐसे ही 6 प्रसिद्ध मेलों के बारे में बताने वाले हैं, जिसे देखने के लिए विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं।

1. बेणेश्वर मेला

बेणेश्वर मेला राजस्थान के डूंगरपुर जिले में लगता है। यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होता है। बेणेश्वर में जहां मेला लगता है, वहां सोम, माही,जाखम नदियों का पवित्र संगम है। इस मेले में आदिवासी लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह मेला बेणेश्वर मंदिर के परिसर में लगता है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। इस मेले में जादू, तमाशे और करतब का प्रदर्शन किया जाता है।

शाम के समय यहां के स्थानीय लोक कलाकार द्वारा संगीत और नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। आदिवासी लोग अपने पारंपरिक पोशाकें पहनकर नाचते और गाते हैं। इस मेले से जुड़ी एक मान्यता है कि बेणेश्वर त्रिवेणी संगम से जुड़ी नदी सोम यदि पहले पूर्ण प्रवाह के साथ बहती है, तो उस साल चावल की फसल अच्छी होती है। यदि माही नदी में जल प्रवाह पहले होता है तो  समय ठीक नहीं माना जाता है।

2. नागौर पशु का मेला

यह मेला राजस्थान के नागौर में लगता है। इस मेले का आयोजन बड़े स्तर पर होता है। यह मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है। नागौर पशु मेला एक वार्षिक उत्सव है, जो जनवरी-फरवरी महीने में लगता है। इस मेले को रामदेव जी पशु मेला भी कहते हैं। यह मेला जगह-जगह के पशुओं के लिए जाना जाता है क्योंकि इस मेले में दूर दूर से लोग पशुओं को बेचने और खरीदने आते हैं। व्यापारियों और खरीदारों के अलावा यहां पर्यटक बड़ी संख्या में इस मेले की सांस्कृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए आते हैं।

मेले में मनोरंजन के लिए घोड़े की दौड़, सांड की लड़ाई और मुर्गों की लड़ाई प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है। पूरे मेले के समय यहां के स्थानीय कलाकार लोक संगीत प्रस्तुत करते हैं। इस मेले में एशिया का सबसे बड़ा लाल मिर्च बाजार लगता है। यहां पशुओं की सजावट इतनी सुंदर की जाती है जो राजस्थान संस्कृति को दर्शाती है। मेले में पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता, मूंछ प्रतियोगिता, बाजीगर, कठपुतली का खेल, कहानी सुनाना, नृत्य कार्यक्रम आदि भी आयोजित किए जाते हैं।

3. रामदेवरा मेला

यह मेला राजस्थान के जैसलमेर के पोकरण में रामदेवरा जगह पर लगता है।रामदेवरा का मेला शुक्ल पक्ष में भादो और माघ में दूज से लेकर दसवीं तक चलता है। यह साल में दो बार आयोजित किया जाता है। इस मेले में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस मेले में सुरक्षा की कड़े इंतजाम किए जाते हैं। रामदेव जी को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु बाबा रामदेव की समाधि के दर्शन करते हैं और यहां बाबा के दरबार में विशेष पूजा अर्चना कर अपनी मनोकामना बाबा के सामने रखते हैं।

4. खाटू श्याम मेला

यह मेला राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक जगह पर लगता है। खाटू श्याम बाबा का मेला हर साल फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष में लगता है। इस मेले में लोग भारत के हर क्षेत्र से आते हैं। इस मेले का आयोजन खाटू श्याम बाबा के जन्मदिन के अवसर पर किया जाता है। इस मेले के लगने के पीछे एक पौराणिक मान्यता है कि फाल्गुन महीने में ही बर्बरीक ने अपना शीश काट कर भगवान कृष्ण को दान दिया था।

तभी भगवान ने उन्हें वचन दिया कि तुम भविष्य अर्थात कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे। बर्बरीक भीम के बेटे घटोत्कच के पुत्र थे। जो एक तीर से पेड़ के सारे पत्तों को भेद सकते थे। इस मेले के दौरान बाबा के दरबार में राम दरबार की झांकियां लगाई जाती है। खाटू श्याम मंदिर को बहुत सुंदर सजाया जाता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने आते हैं। खाटू श्याम जी का जन्मदिन हर साल कार्तिक महीने की एकादशी के दिन मनाया जाता है।  

5. करौली देवी मेला

यह मेला राजस्थान के करौली जिले में  कैला देवी स्थान पर लगता है। इतिहास के अनुसार इस मंदिर का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना है। चैत्र मास में देवी पूजा का विशेष महत्व होता है। कैला देवी  मेला 17 दिन तक चलता है। यहां पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में पैदल यात्रा कर पहुंचते हैं। नवरात्रि के समय श्रद्धालु राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली  से दर्शन करने पहुंचते हैं।

एक पौराणिक मान्यता है कि केला देवी, देवी महायोगिनी महामाया का रूप है। जिन्होंने नंद और यशोदा के घर जन्म लिया और उनकी जगह भगवान कृष्ण ने ली। जब कंस ने उन्हें मारने की कोशिश की तो उन्होंने अपना दिव्य रूप दिखाया और कहां जिसे वह मानना चाहता था, वह पहले ही कहीं और जन्म ले चुका है। उस देवी को अब केला देवी के रूप में पूजा जाता है।

6. पुष्कर मेला

राजस्थान का पुष्कर मेला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस मेले में राजस्थान की संस्कृति को करीब से देखने और उसका लुफ्त उठाने का अवसर मिलता है। इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र रेगिस्तान का जहाज ऊंट होता है। इस मेले में पर्यटक देश-विदेश से हिस्सा लेने आते हैं।

यह मेला अजमेर जिले से 15 किलोमीटर दूर पुष्कर नामक जगह पर लगता है। इस मेले में ऊंटों का व्यापार किया जाता है। यह मेला कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक चलता है । यहां कंगन, कपड़े, वस्त्र  की दुकान होती हैं। जहां से लोग बड़ी मात्रा में खरीदारी करते हैं। इस मेले में ऊटों की दौड़ का आयोजन भी करवाया जाता है।

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