Udaipur Holi With Gunpowder: बारूद से होली खेलने वाले मेनार गांव की यह परंपरा 400 साल से चली आ रही है। इस गांव में होली के तीसरे दिन बारूद से होली खेली जाती है। इस परंपरा में यहां के लोग होली के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि मुगलों ने मेवाड़ पर किस तरह हमला किया और उस हमले का मेवाड़ के लोगों ने किस तरह डटकर मुकाबला किया। यह परंपरा मेवाड़ में मुगलों पर जीत की खुशी में हर साल दोहराई जाती है। इस दिन मेनार गांव के युवा क्षत्रिय योद्धा की तरह तैयार होकर होली खेलते हैं।

होली में करते हैं भीषण युद्ध

यह होली दोपहर के समय से शुरू होकर देर रात तक खेली जाती है। इस होली में गांव के लोग के द्वारा लगभग 3000 बंदूकें चलाई जाती हैं। इस होली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं । यह युद्ध परंपरा कोई सामान्य नहीं है। इसको बिल्कुल युद्ध की तरह ही दोहराया जाता है। इस युद्ध में बंदूक और तोपों की गर्जना  पूरे मेवाड़ में गूंज उठती हैं। इस बारूद की होली में पुलिस किसी तरह की रोक नहीं लगती । यहां के लोगों में इतना अनुशासन होता है कि बारूद की होली खेलते हुए भी यह लोग किसी तरह का कोई झगड़ा या कोई नुकसान नहीं करते । होली को दिवाली की तरह मनाया जाता है।

चारों तरफ होता है धुआं-धुआं

गांव में रहने वाले युवा पांच टीम बनाते हैं। फिर और आतिशबाजी करते हैं, जो कि कई घंटों तक चलती है। फिर पांच टीम युद्ध के लिए तैयार होती है। ये हमले के आदेश पर 5 चौकों पर एकत्र होती है। बंदूकों से गोलियों की बौछार होती है। चारों तरफ धुआं ही धुआं और तेज आवाज होती है। यह युद्ध अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर ही किया जाता है। महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह के समय से ही इस गांव में एक चौकी हुआ करती थी। किंतु यह बात तब की है जब मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह का राज्य था। उस समय मेवाड़ में जगह-जगह मुगलों की छावनियां रहती थी।

मेवाड़ की रक्षा में शहीद हुए कई लोग

मेनार गांव में भी मुगलों की एक छावनी थी। इन छावनियों के आतंक से लोग दुखी हो गए थे। मुगलों की इस चौकी से मेवाड़ को सुरक्षा का खतरा था। मेवाड़ की रक्षा करने के लिए मेनारिया ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों ने रणबांकुरे बनकर मुगलों की चौकी को ध्वस्त कर दिया। इस समाज के कुछ लोग मेवाड़ की रक्षा की खातिर शहीद हो गए। उसके बाद से ही यहां के लोग जीत को इस अंदाज में मनाते हैं।

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