Jaipur Bomb Blast 2008 Conviction: राजस्थान की विशेष अदालत ने कल मंगलवार 8 अप्रैल 2025 को 17 साल पुराने जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट 2008 के केस में आखिरकार फैसला सुना दिया। अपने फैसले में चार खूंखार आतंकियों सैफुर्रहमान, मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ तथा शाहबाज अहमद को आजीवन सलाखों के पीछे भेज दिया। आपको बता दें इनमें से 3 आतंकियों को जयपुर ब्लास्ट केस में सजा भी सुना दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर रिहा कर दिया था। बम ब्लास्ट के पीड़ितों को आज जैसे कोर्ट के फैसले का पता चला, तो उनकी न्याय की आस में पथराई आंखें नम हो गईं। उन्होंने कहा कि दर्द तो ताउम्र सालता रहेगा लेकिन जख्म पर कुछ मरहम लगा है।
जानें क्या था पूरा मामला
बता दें 13 मई 2008 को राजस्थान की राजधानी जयपुर के विभिन्न स्थानों पर 8 बम विस्फोट को अंजाम दिया गया था, जबकि प्रशासन की सतर्कता से चांदपोल बाजार में स्थित राम मंदिर के पास एक बम जिंदा बम बरामद किया गया था। इसे बाद में निष्क्रिय कर दिया गया था। भीड़ भाड़ वाले इलाकों में किए गए इन विस्फोटों में कुल 71 लोगों की जान चली गई थी।
2023 में हाईकोर्ट ने कर दिया था बरी
बता दें जयपुर बम धमाकों से जुड़े 8 मामलों में इन आतंकियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने मार्च 2023 में सबूतों के अभाव में एक बार इन सभी को बरी कर दिया था। साथ ही अपराधियों को बरी करते हुए अपने आदेश में जांच एजेंसियों की जांच में कमियों का हवाला दिया था। इसके बाद ही पीड़ितों के दबाव में तत्कालीन सरकार ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। जिसका फैसला आना अभी बाकी है। ज्ञात हो अभियोजन पक्ष ने इस केस में कुल 112 गवाहों के बयान दर्ज करने के साथ ही लगभग 1200 दस्तावेजों के सबूत प्रस्तुत किए थे।
जानें क्या कहा कोर्ट ने आदेश में
कल कोर्ट के सजा सुनाने के बाद विशेष लोक अभियोजक सागर तिवारी ने बताया कि “अदालत ने सभी 4 आरोपियों सैफुर्रहमान, मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ तथा शाहबाज अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने कहा कि यह घटना केवल एक व्यक्ति विशेष को प्रभावित नहीं करती है, बल्कि यह देश की संप्रभुता और अखंडता पर हमला है। दूसरे पक्ष ने मांग की कि पुराने जुड़े मामलों में दी गई सजा को अब सेट ऑफ किया जाना चाहिए लेकिन हमने अदालत को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताया कि ऐसे मामलों में सेट ऑफ का प्रावधान लागू नहीं होता है।”
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