Alwar King Jai Singh Story: राजस्थान का इतिहास अपने आप में निराला है। यहां के राजा महाराजाओं की कहानी लोगों को खूब भाती है। आज हम आपको ऐसे ही एक राजा की कहानी बताने वाले हैं, जिसे सुनकर आप भी हैरान हो सकते हैं। यह कहानी राजस्थान के अलवर सियासत के राजा जयसिंह की है, जो खुद को भगवान राम के अवतार मानते थे। इसके पीछे भी एक कहानी छिपी है, आखिर वह ऐसा क्यों मानते थे। चलिए बताते हैं क्या है पूरी कहानी।

ये बात है उस दौर की जब लॉर्ड विलिंगटन भारत के वायसराय थे। एक बार उन्होंने वायसराय हाउस में पार्टी रखी। इस पार्टी में भारत के कई रियासतों के राजा शामिल हुए। इन्हीं में से एक थे अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर। जयसिंह ने एक बहुत सुन्दर अंगूठी पहन रखी थी। डिनर के दौरान लेडी विलिंगटन की नजर उन पर पडी, तो उन्होंने उसकी तारीफ की। ये वो दौर था जब वायसराय और उनकी पत्नी को कुछ पसन्द आता, तो राजा को वो चीज गिफ्ट करनी पड़ती।

रिंग ने भी यही किया लेडी विलिंटन को ये रिंग गिफ्ट कर दी। लेडी विलिंटन ने रिंग को  करीब से देखने के बाद  रिंग जयसिंह को लौटाना चाहा, तो जयसिंह ने एक वेटर को बुलाया और उसकी ट्रे में अंगूठी रखवा दी। उन्होंने वेटर से एक पानी का कटोरा मंगवाया और अंगूठी धुलवाने लगे। उनकी ये हरकत देख पार्टी के मौजूद सभी लोग दंग रह गये। इस घटना के बाद से जयसिंह अंग्रेजों की नजर में आ गये।

आखिर जयसिंह ने ऐसा किया क्यों ऐसा?

ब्रिटिश इतिहासकार लिखते हैं कि उनको ये वहम था कि वो भगवान श्री राम के अवतार हैं। सिर्फ अंग्रेंज ही नहीं बल्कि, उनके राज्य के लोग भी छू ना सके इसलिए वो काले रंग के दस्ताने पहन कर रखते थे। ब्रिटिश के बादशाह से हाथ मिलाने के लिए भी उन्होने अपने हाथों से दस्ताने नहीं उतारे थे। उनके राज्य में सारे आदेश भगवान श्री राम के आदेश के रूप में जारी होते थे। कहते जयसिंह ने अपने दरबार के कई पंडितो को ये हिसाब लगाने रखा था कि भगवान श्री राम की पगड़ी कितनी बड़ी थी, ताकि उसी हिसाब से अपनी पगड़ी बनवा कर पहने।

बच्चों को फेंकते थे शेर के आगे

अपनी किताब 'FREEDOM AT MIDNIGHT' में 'LORRY COLLINS' और 'DOMINIQUE LAPIERRE', में लिखते है कि जयसिंह इतने क्रूर थे कि जब वो शेर का शिकार करने जाते तो, शेर को अपने दायरे में लाने के लिए कुत्ते बकरी की बजाय गांव वालों के बच्चों को उठाकर शेर के सामने फेंक दिया करते थे। भारतीय इतिहासकारों के हिसाब से उनका स्वभाव बिलकुल अलग है। इनके मुताबिक वो कट्टर देशभक्त थे।

उन्होने अलवर में पंचायतों का जाल बिछाया। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी , अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को डोनेशन दिया। इतना ही नहीं हिन्दी को अलवर की राजकीय भाषा का दर्जा दिया था। ब्रिटिश इतिहासकार के अनुसार एक बार  उनके घोड़े ने जिद पकड़ ली थी। कई प्रयास करने के बाद भी घोड़ा टस से मस नही हुआ तो उन्होंने अपने घोड़े पर कैरोसीन डालकर उसे जिंदा जला दिया था।

मृत्यु भोज पर भी पाबंदी लगाई

क्रूर थे तो अलवर के राजा कैसे बना दिया गया और यदि इतने क्रूर नहीं थे तो अंग्रेजो ने ऐसा क्यों लिखा है। पता करने के लिए अलवर रियासत के इतिहास को जानने होगा। 1857 की क्रांति से पहले जब मंगल सिंह अलवर रियासत के राजा थे। उनकी मृत्यु के बाद  उनके बेटे जयसिंह प्रभाकर को अंग्रेजों ने पहला राजा घोषित कर दिया। जयसिंह ने अलवर में बहुत विकास कार्य किया।

उन्होंने इस रियासत में भी बेमेल विवाह, बाल विवाह और तंबाकू के सेवन पर रोक लगाई। मृत्यु भोज पर भी पाबंदी लगाई। अपनी मां के मरने पर भी उन्होंने मृत्यु भोज नहीं दिया। उन्होंने ही अलवर में पंचायती राज कायम किया था। उन्होंने ही विजय मंदिर पैलेस और सरिस्का में खूबसूरत महल बनवाए थे। एक बार उन्होंने अंग्रेजों के सामने यह तक कह दिया कि वह अलवर राज्य अपनी जनता को देना चाहते हैं। जय सिंह को कई भाषाओं का ज्ञान था उनका मानना था कि जब अंग्रेज अपनी भाषा नहीं छोड़ते तो हम अपनी भाषा क्यों छोड़े।

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