Lok Devta Pabuji: पाबूजी राठौड़ राजस्थान के एक ऐसे लोक देवता हैं, जिन्होंने गौ रक्षा के लिए अपनी शादी वाले दिन ही अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे मारवाड मे पहली बार ऊंट लाये थे और इसीलिए उन्हें ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। आज के समय में भी जब ऊंट बीमार पड़ते हैं तो राजस्थानी लोग लोक देवता पाबूजी राठौड़ की पूजा करते हैं। इसके साथ ही लोगों का ये भी मानना है कि पाबूजी राठौड़ भगवान लक्ष्मण का अवतार थे।

पाबूजी राठौड़ का जन्म

पाबूजी राठौड़ का जन्म 13वीं शताब्दी में जोधपुर के फलौदी के पास कोलूमंड में हुआ था। उनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ थे और मां का नाम कमलादे था। ये राठौड़ समाज के मूलपुरुष राव सीहा के वंशज थे। 

विवाह के दिन ही दी प्राणों की आहुति

लोक देवता पाबूजी राठौड़ का विवाह अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की बेटी सुप्यारदे से तय हुआ था। जिस दिन सुप्यारदे और पाबूजी का विवाह हो रहा था, तभी फेरों के बीच से ही उठकर अपने बहनोई जींदराव के साथ देवल चारणीं की गायें छुड़ाने चले गए थे। वहीं देचूं गाँव में होरहे युद्ध में उनके बहनोई ने ही उनकी हत्या कर दी थी क्योंकि दोनों के बीच किसी बात को लेकर नाराज़गी चल रही थी। जिसके कारण वे वीरगति को प्राप्त होगये। उसके बाद उनकी अर्धविवाहित पत्नी सुप्यारदे भी अपने पति के साथ सती हो गयी थी। 

पाबूजी के पांच प्रमुख साथी

पाबूजी के पांच प्रमुख साथी हुआ करते थे जिनका नाम सरदार चांदो जी, सरदार सावंत जी, सरदार डेमा जी, सरदार हरमल जी राइका और सलजी सोलंकी था। पाबूजी इन पाँचों पर अटूट विश्वास करते थे। 

प्लेग रक्षक और ऊंटों के देवता

प्लेग रक्षक और ऊंटों के देवता पाबूजी के लिए मान्यता है कि सर्वप्रथम वो मारवाड मे ऊंट लाये थे। ऊंटों को पालने वाली राइका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य मानती है और उनकी पूजा करती है। इसके अलावा मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर इनकी पूजा करते हैं। साथ ही थोरी और भील जाति के लोगों में भी वे काफी लोकप्रिय हैं। 

पाबूजी के लोकगीत

पाबूजी केसर कालमी घोड़ी और उनकी बाईं ओर मुड़ी पगड़ी और भाले के लिए प्रसिद्ध हैं। कोलूमंड में इनका सबसे प्रमुख मंदिर है। इस जगह पर चैत्र अमावस्या को मेला लगता है। माठ वाध्य के साथ नायक और रेबारी जाति के लोग 'पाबूजी के पावड़े' गाथा गीत गाते हैं। इसके अलावा नायक जाति के भोंपों द्वारा 'पाबूजी के पड़' रावण हत्था' नाम के वाध्य के साथ सुनाई जाती है। इतना ही नहीं थोरी जाति के लोग सारंगी के साथ पाबूजी की यश गाथा गाते हैं, जिसे वहां की भाषा में 'पाबूजी धनी रो बाँचना' कहा जाता है।