Barmer City: राजस्थान का बाड़मेर शहर संस्कृति, मनमोहन पनिहारियों, ऊंट और ऊंट चरवाहों की रंग-बिरंगी पगड़ियों, लोकगीतों, धोरा-री-धरती की सुंदर छविया अपने अंदर समेटे हुए हैं। इस शहर को ब्लैक गोल्ड के नाम से भी जाना जाता है।

बाड़मेर शहर का ब्लैक गोल्ड नाम

इस शहर का ब्लैक गोल्ड नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां असख्य मात्रा में क्रूड ऑयल पाया जाता है। जिसमें डीजल, पेट्रोल और अलग-अलग प्रकार की गैसों के भंडार मिले हुए हैं। लेकिन, इन सब पदार्थ के मिक्स होने की वजह से यहां तेल थोड़ा महंगा पड़ता है। बाड़मेर में मौजूद पांच 15 नामक स्थान पर 1000 एकड़ में फैली रिफाइनरी का निर्माण किया जा रहा है। इस तेल को निकाल कर देश की अर्थव्यवस्था मजबूत की जा सकती है।

बाड़मेर की स्थापना

बाड़मेर शहर की स्थापना और शासकों की कहानी भी बड़ी अनोखी है। इस शहर की स्थापना 13 वीं सदी में राव बहाड़ परमार ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम बाड़मेर पड़ा था। राव बहाड़ परमार जूना बाड़मेर के शासक थे। इन्होंने ही जूना बाड़मेर की पहाड़ी पर एक छोटे से किले का निर्माण करवाया था। 

जूना को बाड़मेर के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके रखरखाव के अभाव में जूना बाड़मेर का किला जीर्ण-क्षीण हो चुका है। जूना बाड़मेर वर्तमान बाड़मेर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है। परमारो के बाद जूना बाड़मेर पर चौहानों का आधिपत्य रहा था। 

बाड़मेर के चौहान शासक 

रावत लुका ने अपने भाई रावत मंडली की सहायता से चौहान शासक राव मन्धा से बाड़मेर जीता और उसने जूना बाड़मेर में अपना राज्य स्थापित कर उसको अपनी राजधानी बनाया। 7 अप्रैल 1948 को भारत सरकार ने राजस्थान राज्य में बाड़मेर को एक नया जिला बना दिया। 

ब्रह्मा जी और सावित्री जी का मंदिर

बाड़मेर जिला एक रेगिस्तान है, यहां एक सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का मंदिर है, जिनकी मूर्ति संगमरमर से बनाई गई है। यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां ब्रह्मा जी के साथ सावित्री जी विराजमान है।

बाड़मेर का जल महल कुआं

बाड़मेर में एक ऐसा कुआं है, जिसे जल महल के नाम से भी जाना जाता है। सन 1947 में मारवाड़ क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था। उस दौरान यहां के लोग रोजी-रोटी की तलाश में बाहर जाने को मजबूर हो गए, दूर-दूर तक कहीं पीने का पानी उपलब्ध नहीं था, ऐसी स्थिति में रावल गुलाब सिंह ने इस कुएं का निर्माण करवाया था।

खरवाल समाज की मान्यता

इस मंदिर में एक समय में यहां खारवाल जाति के लोग विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे थे। तब खारवाल समाज के एक ऋषि के सपने में मां सांभरा ने दर्शन दिए थे और कहा था कि खरवाल समाज का कोई भी मनुष्य गड्ढा खोदकर बारिश के पानी को इकट्ठा करेगा तो उसमें नमक जमा हो जाएगा। तब से लेकर आज तक खरवाल जाति के लोग नमक का काम कर रहे हैं। 

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