Jhalawar: साल 1838 को राजस्थान का झालावाड़ जिला कोटा राज्य के कुल 17 परगनों को मिलाकर बनाया गया था। राज्य के निर्माण का मुख्य सूत्रधार झाला जालिम सिंह को माना जाता है और उन्हीं के नाम पर जिले का नाम झालावाड़ रखा गया। राजा के वंशजों ने लगातार राज्य में विकास किया। आजादी के बाद साल 1948 में इसे राजस्थान का 17वां जिला घोषित किया गया। वर्ष 1956 में एमपी के 77 गांवों और सुनेल को राज्यों के पुनर्गठन के दौरान जिले में शामिल किया गया था। इसके बाद कोटा के 13 गांवों को भी इसमें स्थानांतरित किया गया था।
झालावाड़ का इतिहास
1758 से 1824 ई. तक कोटा के राजा राजराणा जालिम सिंह यहां के सेनानायक रहे। उन्होंने झालावाड़ के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार कर कई राज्यों से इसके निर्माण की चर्चा भी की थी। 1838 से 1845 ई. तक राज्य में महाराजराणा मदन सिंह झाला का शासन रहा। इस दौरान झालावाड़ राज्य की नींव रखी गई थी और स्वतंत्र राज्य के सिक्के चलाए गए थे।
1845 से 1875 ई. तक महाराजराणा पृथ्वी सिंह झाला ने राज्य की कमान संभाली। इनके कार्यकाल के समय क्रांतिकारी तात्या टोपे ने झालावाड़ का दौरा भी किया था। इसी समय पृथ्वी विलास पैलेस का भी निर्माण किया गया था। साल 1884 में युवा नरेश महाराज राणा जालिम सिंह झाला द्वितीय ने जिले की राजगद्दी संभाली। उन्होंने राज्य में सेना, पुलिस, अदालतें और दवाखानों की व्यवस्था कराई। साथ ही शिक्षा के लिए स्कूलों का निर्माण भी कराया।
साल 1899 में महाराजराणा भवानीसिंह झाला ने झालावाड़ पर राज किया। उन्होंने इस दौरान आधुनिक झालावाड़ को बढ़ावा दिया। कला प्रेमी इस शासक ने अपने समय में कई अनूठे भवनों का निर्माण कराया। वर्ष 1929 से महाराजराणा राजेंद्र सिंह सुधाकर ने राज्य की कमान संभाली, इस दौरान साहित्य और खेलों का विकास किया गया। 1943 से 1948 ई. तक महाराजराणा हरिश्चंद्र सिंह झाला ने जिले पर राज किया। जिले की सभी संपत्ति भारत सरकार को सौंपने वाले वे पहले राजा थे।