Rajasthan History: भारत के इतिहास में बहुत-सी वीरांगनाएं हुईं, लेकिन एक वीरांगना ऐसी थी जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। हालांकि, आप जानकर हैरान होंगे कि इस वीरांगना ने युद्ध में पारंगत हासिल नहीं किया था, लेकिन फिर भी इसे आज भी इतिहास की सबसे महान महिला के रूप में जाना जाता है। जब भी चित्तौड़गढ़ का नाम लिया जाता है, इनका जिक्र जरूर होता है। इस वीरांगना का जिक्र यहां हो रहा है, उनका नाम था पन्नाधाय!
कौन थी पन्नाधाय?
पन्नाधाय मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह की दाई हुआ करती थीं। पन्नाधाय ने राजकुमार उदय सिंह को न सिर्फ अपना दूध पिलाया था, बल्कि उनके प्राणों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान भी दिया था, जिसे देना किसी भी मनुष्य के लिए असंभव सा काम था।
इतिहास:
उदय सिंह जब छोटे थे, तब मेवाड़ के किले में षड्यंत्र का जाल बिछा हुआ था। रानी कर्णावती को इस बात का अनुमान था कि उदय सिंह के खिलाफ साजिश की जा सकती है। इसलिए कर्णावती ने अपनी सबसे विश्वासपात्र दासी और उदय सिंह की दाई पन्ना को उदय सिंह सौंपते हुए महल छोड़ देने को कहा, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। राणा सांगा के चचेरे भाई बनवीर ने महल में ही राणा सांगा की हत्या कर दी। राणा सांगा की हत्या करने के बाद वह उदय सिंह के कक्ष की ओर बढ़ गया।
पन्नाधाय ने कैसे बचाया मेवाड़ के भविष्य को?
पन्नाधाय उस कक्ष में उदय सिंह को सुला रही थीं और साथ ही उनका पुत्र भी उसी कक्ष में था, जो उदय सिंह के हमउम्र हुआ करता था। विश्वसनीय गुप्तचर के माध्यम से जब पन्नाधाय को यह खबर मिली कि बनवीर राणा सांगा की हत्या कर चुका है और अब वह उदय सिंह की हत्या करने आ रहा है, तो पन्नाधाय ने जो किया, वह किसी भी मां के लिए करना बिल्कुल भी आसान नहीं था।
पन्नाधाय ने दिया अपने पुत्र का बलिदान:
पन्नाधाय ने उदय सिंह को उठाकर अपने पुत्र के स्थान पर घास की टोकरी में सुला दिया और अपने पुत्र को उदय सिंह की जगह सुला दिया। बनवीर ने उदय सिंह के बारे में पूछा। पन्नाधाय ने उसे बिस्तर की ओर इशारा कर दिया, जहां उसका खुद का पुत्र सो रहा था। बनवीर ने अपने हाथ में पकड़ी तलवार से पन्नाधाय के पुत्र की हत्या कर दी। पन्नाधाय के सामने उसके पुत्र की हत्या कर दी गई। बनवीर को शक न हो, इस वजह से वह रो भी नहीं पाईं।
पन्नाधाय ने किया उदय सिंह का पालन-पोषण:
पन्नाधाय उदय सिंह को महल से बचाकर बाहर निकाल ले गईं और चित्तौड़गढ़ के एक सामान्य सैनिक परिवार में उन्होंने शरण ली। पन्नाधाय ने उदय सिंह को अपने पुत्र की तरह पाला। बाद में उदय सिंह बड़े होकर चित्तौड़गढ़ के शासक के पद पर नियुक्त हुए। इतिहास में पन्नाधाय का बलिदान अमर हो गया। पन्नाधाय ने सिर्फ अपने बारे में न सोचकर मेवाड़ के भविष्य के बारे में सोचा और अंत तक अपने कर्तव्य का निर्वहन करती रहीं।