Rajasthan History:राजस्थान, जिसे 'राजाओं की भूमि' और 'रजवाड़ों की धरती' भी कहा जाता है, भारत का सबसे बड़ा राज्य है। साल 1949 में इसे भारतीय गणराज्य में शामिल किया गया। यह राज्य अपने भव्य राजमहलों, प्राचीन सभ्यताओं, और प्रतापी राजाओं के इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यहां का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वैभव देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करता है।
प्राचीन राजस्थान का ऐतिहासिक वैभव
प्राचीन काल में राजस्थान के कुछ हिस्से वैदिक सभ्यता और कुछ सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े थे। बूंदी और भीलवाड़ा जिलों में पाषाण युग के अवशेष मिले हैं, जबकि वैदिक काल का मत्स्य साम्राज्य वर्तमान में जयपुर क्षेत्र में स्थित था, जिसकी राजधानी विराटनगर थी, जो राजा विराट द्वारा स्थापित की गई थी। भरतपुर, धौलपुर, और करौली क्षेत्र उस समय सूरसेन जनपद का हिस्सा थे, जिसकी राजधानी मथुरा थी।
700 ईस्वी के आसपास राजस्थान के अधिकांश हिस्सों पर गुर्जरों का प्रभुत्व हो गया, जिनकी राजधानी कन्नौज थी। लगभग 11वीं शताब्दी तक गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने अरब आक्रमणकारियों से इस क्षेत्र की रक्षा की। परंपरागत रूप से राजस्थान में मौर्य, गुप्त, यवन-शुंग, कुषाण, हूण और ब्राह्मण साम्राज्यों का शासन भी रहा है।
राजस्थान पर राजपूत और मुगल शासन का इतिहास
1000 ईस्वी में राजस्थान के कुछ हिस्सों पर राजपूतों का शासन स्थापित हुआ। 1191 में तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को हराया, लेकिन 1192 में हुए दूसरे युद्ध में गौरी विजयी रहा, जिससे राजस्थान का एक भाग मुगलों के अधीन हो गया। 13वीं शताब्दी तक मुगलों ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया और अधिकांश राजपूत शासक मुगल सल्तनत के अधीन काम करने लगे।
15वीं शताब्दी में अलवर के हेम चंद्र विक्रमादित्य ने अफगान शासकों को 22 बार हराया, जिसमें मुगल सम्राट अकबर भी शामिल था। लेकिन 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए हेम चंद्र मारा गया। इसके बाद कई राजपूत शासकों ने अकबर के शासन को स्वीकार कर लिया। 17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ राजपूताना पर मराठों का प्रभाव बढ़ा, लेकिन वे ज्यादा समय तक इसे नियंत्रित नहीं कर सके।
राजस्थान राज्य गठन की प्रक्रिया
देश की आजादी के लगभग दो साल बाद राजस्थान का गठन सात चरणों में पूरा हुआ। मार्च 1948 में अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को मिलाकर मत्स्य संघ का गठन किया गया। इसके बाद 5 मार्च 1948 को डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, बूंदी, शाहपुर, और टोंक को राजस्थान संघ में जोड़ा गया।
तीसरे चरण में अप्रैल 1948 में उदयपुर को शामिल किया गया, जहां महाराणा को राजप्रमुख बनाया गया। मार्च 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर, और बीकानेर को राजस्थान संघ में जोड़ा गया और मई 1949 में मत्स्य संघ का भी इसमें विलय हुआ। छठे चरण में सिरोही रियासत, और सातवें और अंतिम चरण में 1 नवंबर 1956 को आबू देलवाड़ा का विलय कर राजस्थान का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया।
राजस्थान का ऐतिहासिक गठन और विशेषताएं
राजस्थान का गठन 30 मार्च 1949 को हुआ, इसलिए हर साल इस दिन को राजस्थान स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस राज्य की राजधानी जयपुर की स्थापना राजा जय सिंह द्वितीय ने की थी। थार रेगिस्तान से होकर भारत की एकमात्र खारे पानी की नदी लूनी बहती है। राजस्थान के पहले मनोनीत मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री और पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल थे, जबकि पहले राज्यपाल सरदार गुरूमुख निहाल सिंह बने, जिन्होंने 1 नवंबर 1956 को रियासतों के पुनर्गठन के बाद पदभार संभाला। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान को "रायथान" कहा था।