Rajasthan History: राजस्थान भारत का वह राज्य है, जहां की रियासतों ने मुगलों के खिलाफ सबसे अधिक युद्ध किए। भले ही कई बार यहां के शासकों को हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन यहां के योद्धाओं ने सिर झुकाने से बेहतर सिर कटाना समझा। यही वजह है कि राजस्थान के इतिहास में ऐसे कई राजपूत योद्धा हुए, जिनके नाम से मुगल खार खाया करते थे। ये वे नाम थे, जिन्होंने उन्हें लंबे समय तक संपूर्ण भारत पर आधिपत्य जमाने से रोके रखा। आइए जानते हैं राजस्थान के उन शूरवीर योद्धाओं के बारे में।

महाराणा प्रताप

राणा उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान शासक थे। महाराणा प्रताप ने बहुत से युद्ध लड़े, किंतु उनमें सबसे प्रमुख हल्दीघाटी का युद्ध था, जिसमें उन्होंने अकबर की विशाल सेना के खिलाफ युद्ध किया। युद्ध में विजय न मिलने के बावजूद उन्होंने अपने अद्वितीय साहस और दृढ़ नायकत्व से अकबर को स्वयं युद्ध में उतरने पर मजबूर कर दिया।

अपनी पूरी जिंदगी महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में बिताई। अकबर की इतनी बड़ी सेना के रहते हुए भी महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कभी मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार नहीं की। उनके नेतृत्व में मेवाड़ का साम्राज्य स्वतंत्र रहा, और उन्होंने पूरी मेवाड़ की सेना को संगठित रखा।

राणा सांगा

राणा सांगा के नाम से प्रसिद्ध मेवाड़ के शासक संग्राम सिंह, राणा कुंभा के पुत्र और राणा उदय सिंह द्वितीय के चाचा थे। राणा सांगा भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्होंने अफगानों, राजपूतों और अन्य शासकों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और जीते। इसके अलावा, उन्होंने मेवाड़ के साम्राज्य को कई संघर्षों के बाद बचाया और उसे बहुत मजबूत बनाया।

उनके शासनकाल में कई युद्ध हुए, जिनमें से एक प्रमुख युद्ध पानीपत की पहली लड़ाई थी, जो 1526 में हुई। इस लड़ाई में उनका सामना मुगल शासक बाबर से हुआ। हालांकि बाबर अपनी अत्यधिक सेना और हथियारों के कारण युद्ध जीत गया, लेकिन राणा सांगा की वीरता और संघर्ष की गाथा आज भी जानी जाती है।

अमर सिंह

महाराणा प्रताप के सबसे बड़े पुत्र अमर सिंह ने अपने पिता के संघर्षों को जारी रखा और मेवाड़ को बाहरी आक्रमणों से बचाने के लिए कई युद्ध लड़े। उन्होंने मेवाड़ के संरक्षण के लिए मुगल साम्राज्य से टक्कर ली। अमर सिंह का शासनकाल संघर्षों से भरा हुआ था, जिसमें उन्होंने अपने नेतृत्व और सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया। उन्होंने मेवाड़ की सेना को मजबूत किया और शाही अधिकार बनाए रखा। अपने पिता की अस्वस्थता के दौरान उन्होंने मेवाड़ का शासन संभाला और साम्राज्य को कई आक्रमणों से बचाया।

चंद्रसेन राठौर

चंद्रसेन राठौर उन राजपूतों में गिने जाते हैं, जिन्होंने मुगल सल्तनत की अधीनता कभी स्वीकार नहीं की। उन्होंने एक छोटी सी सेना के साथ 20 वर्षों तक मुगल सल्तनत को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया। चंद्रसेन राठौर मारवाड़ के राजा थे और उन्होंने लगभग 20 साल तक मुगलों के लगातार हो रहे आक्रमणों से अपनी रियासत की रक्षा की।

दुर्गादास राठौर

दुर्गादास राठौर भी राठौर वंश के शासक थे, जिन्होंने मुगल सल्तनत की अधीनता को ठुकराकर युद्ध करना बेहतर समझा। उन्होंने औरंगजेब के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया। इतिहासकारों के मुताबिक, दुर्गादास राठौर और औरंगजेब के मध्य लगभग 28 वर्षों तक संघर्ष चला। उन्होंने अपने अगले उत्तराधिकारी अजीत सिंह राठौर के राजाभिषेक तक मारवाड़ को सुरक्षित रखा। उनके शासनकाल में औरंगजेब मारवाड़ पर अधिपत्य नहीं जमा पाया। उनके सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट जारी किया था।

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