Rajasthan History: राजस्थान का इतिहास अपने आप में निराला है। राजस्थान के इतिहास में कई ऐसे राजा हुए हैं, जिन्होंने कई विदेशी महाराजाओं को युद्ध में धूल चटाया है। आज हम आपको एक ऐसे ही राजा की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसका नाम राणा लाखा है। वह राजस्थान के मेवाड़ के शासक थे। राणा लाखा मेवाड़ के शासनकाल का हिस्सा रहे थे। इस बात से आप सभी भली-भांति परिचित हैं। ये महाराणा कुंभा के दादा थे, जिसने मालवा के सुल्तान को पांच बार धूल चटाई थी और उसकी याद में चित्तौड़गढ़ किले पर विजय स्तंभ का निर्माण करवाया था।  

राणा चुंडा को कहते हैं मेवाड़ का भीष्म पितामह

राणा लाखा के पुत्र राणा चुंडा और राणा मोकल थे। राणा चुंडा जिसको मेवाड़ का भीष्म पितामह कहा जाता है। इनके शासन काल में पिछोला झील का निर्माण पिंचू बंजारे के द्वारा करवाया गया, जिसके किनारे आज उदयपुर के भव्य महल सिटी पैलेस बने हुए हैं। उन्होंने दिल्ली के शासक गयासुद्दीन को धूल चटाई और बदले में हिंदू तीर्थ कर वसूल माफ करवा कर उसे जीवन दान दिया। इनके शासनकाल में मेवाड़ आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध बना। इन्हीं के शासनकाल में उदयपुर के जावर क्षेत्र में चांदी निकलना शुरू हुई थी। जो आज भी निकल रही है। उनके दरबार में ज्योतिन भट्ट और धनेश्वर भट्ट जैसे संस्कृत के महान  विद्वान हुए, जो संस्कृत साहित्य में अद्वितीय थे।

किसने की बदनोर की स्थापना

अगर मेवाड़ पर उनके शासनकाल की बात करें, तो इनका शासनकाल 1382 से 1421 तक रहा। इनके शासन काल में मेवाड़ बहुत शक्तिशाली और समृद्ध बना। इनके शासनकाल वाले युग को स्वर्ण युग कहा जाता है। इनकी रगों में राणा क्षेत्र सिंह का खून था। इनका इतिहास आज आपको कहानी के रूप में सुनने को मिलता है। इनका शुभ नाम लक्ष्य सिंह था, लेकिन प्यार से सब लाखा कहते थे। तब से इनका नाम लाखा पड़ गया। उन्होंने उदयपुर के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नगर बदनोर की स्थापना भी की।

1382 में आर्थिक तंगी से जूझ रहा था मेवाड़

1382 ई की बात है, जब ये मेवाड़ के नये महाराणा बने। जब गद्दी संभाली तो मेवाड़ आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। इनके ऊपर सबसे बड़ा दबाव यही था कि कैसे मेवाड़ को आर्थिक समस्या से बाहर निकाला जा सके। कहते हैं किस्मत मेहरबान हो तो हर समस्या का हल किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ इनके साथ हुआ और उदयपुर के समीप स्थित जावर नामक स्थान पर एक चांदी की खान निकली। यह एशिया की सबसे बड़ी चांदी की खान थी। चांदी की खान मिलने से आसपास के क्षेत्र में अच्छी आमदनी होने लगी, जिससे लोगों को रोजगार मिल गया।

धीरे-धीरे मेवाड़ की आर्थिक समस्याएं हल हो गई और यहीं से इनका शासन काल तरक्की करने लगा। हर राजा अपने क्षेत्र को बढ़ाना चाहता है। उनमें से ये एक थे। उन्होंने भी अपने साम्राज्य के विस्तार की सोची, परन्तु प्रारंभ में परिस्थितियों इनके पक्ष में नहीं थी। लेकिन गद्दी संभालते ही जावर में मिली चांदी की खान की वजह से अपार धन संपदा अर्जित हुई। मेवाड़ राज्य आर्थिक समस्याओं से निपट चुका था। अब ये अपनी अच्छी सेना खड़ी करने में समर्थ थे। उन्होंने अपनी सेना तैयार की और अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लग गये।

सुल्तान गयासुद्दीन को कई बार चटाई धूल

इन्होंने  बदनोर जीतकर अपने विजय अभियान की शुरुआत की। यह क्षेत्र पहले मेरो के पास था। इन्होने धीरे-धीरे बूंदी के शासक वीर सिंह हाड़ा को पराजित कर दिया। उसके बाद शेखावाटी, जहाजपुर आदि क्षेत्र को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। इनका प्रभाव बढ़ता गया। इसी बीच आमेर में शकला राजपूत को हराया। इन्होंने  दिल्ली के शासक सुल्तान गयासुद्दीन को कई बार धूल चटाई, जब ये मेवाड़ के राजा थे। तब दिल्ली सल्तनत गयासुद्दीन के हाथ में थी। गयासुद्दीन बड़ा ही महत्वाकांक्षी और क्रूर व्यक्ति था और अपने प्रभुत्व को बढ़ाना चाहता था, इसलिए वह बदनोर आया।

गयासुद्दीन को भेंट की गई घोड़े और सेना

बदनोर में गयासुद्दीन का सामना लाखा से हुआ। मेवाड़ उस समय बहुत ही मजबूत स्थिति में था। लाखा ने गयासुद्दीन को बुरी तरह से पराजित कर दिया। गयासुद्दीन को  इसलिए जिंदा छोड़ दिया ताकि वह काशी, गया और प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थान पर जाने वाले हिंदुओं से कर वसूली नहीं करेगा, बदले में गयासुद्दीन को घोड़े और सेना भेंट की गई। जीवन दान देकर उसे वापस भेज दिया। इतना नहीं इन्होंने मालवा और गुजरात के मुस्लिम शासकों के साथ संघर्ष किया और जीत भी हासिल की। इनके होते हुए मुस्लिम शासक मेवाड़ को किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचा सके।

मेवाड़ की स्मृति की गाथा सुनाता सिटी पैलेस

1396 ई में मांडलगढ़ जीत लेने के बाद भी गुजरात का सफर खान मेवाड़ में प्रवेश न कर सका। इन्होंने  मेवाड़ को इतना शक्तिशाली हालात पर लाकर खड़ा कर दिया था। अब उदयपुर में झील के बनने के पीछे की कहानी बताते हैं, जो आज उदयपुर आने वाले सभी पर्यटकों के लिए एक मनोरम दृश्य का केंद्र बनी हुई है। इसके अंदर की लेक पैलेस, होटल सिटी बनी है और किनारे पर ही मेवाड़ की स्मृति की गाथा सुनाता सिटी पैलेस बना हुआ है। यह झील एक बंजारे के द्वारा बनाई गई और यह पिछोली गांव के पास बनी हुई है। इस वजह से इसका नाम पिछोला पड़ गया। बंजारे घुमक्कड़ व्यापारी हुआ करते थे। अपनी बैलगाड़ी में सामान रखकर एक गांव से दूसरे गांव बेचा करते थे। पिछोला झील के पास एक चबूतरा बना हुआ है, जिसे नटनी का चबूतरा कहा जाता हैं।

ये भी पढ़ें:- राजस्थान का पोखरण...जहां भारत ने दुनिया से छुपाकर किया था परमाणु परीक्षण, जानिए इस जगह का इतिहास