Neemrana Fort History: नीमराणा के अंतिम शासक राजा राजेंद्र सिंह चौहान ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर अंतिम बार यहां पर झंडा लहराया था। 10 दिसंबर 1947 में राजस्थान का प्रस्तावित अस्थाई संविधान बनाकर घोषित किया गया था। शासक राजा राजेंद्र सिंह चौहान की अंतिम इच्छा यह थी कि यह किला पंजाब प्रांत में जाकर मिले।

क्षेत्र की स्थानीय जनता दो गुटों में बट चुकी थी। एक गुट का वर्ग चाहता था कि यह बावड़ी दिल्ली में मिलनी चाहिए इस पक्ष में थे। वहीं दूसरा पक्ष चाहता था कि यह राजस्थान में ही मिले। आंदोलन के परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1948 में मत्स्य राज्य का विलय 30 मार्च 1949 निर्मित राजस्थान में कर दिया गया। वर्तमान में नीमराणा देश का अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्र है, जिसमें जापानी जोन सहित पर्यटन नगरी के नाम से विश्व के मानचित्र पर जाना जाता है।

नीमराना किले का इतिहास

नीमराणा एक कस्बा था पृथ्वीराज चौहान वंश का,अनगिनत संघर्षों साहस और पराक्रम की गाथाओं से परिपूर्ण रहा है। उसी ओर राजस्थान के इस सिंह द्वार कहलाए जाने वाले कस्बे को चौहान वंश ने 31वें शासक राजा हिलादेव के पुत्र राजा राजदेव ने 1446 सन में बसाया था। पहले इस बावड़ी का नाम निमोला हुआ करता था। कहा जाता है राजा राजदेव ने निमोला मेओ को परास्त कर पृथ्वीराज चौहान वंश की स्थापना कर इसको राजधानी बनाई। मगर बाद में आग्रह पर इसका नाम निमराणा रख दिया गया।

नीमराणा फोर्ट पैलेस की स्थापना राजा राजदेव ने 1446 में शुरू करवा दी थी। जिसका विस्तार उनके पुत्र पूरणमल ने 1465 से 1518 में करवाया। उस समय यह महल 8 मंजिला हुआ करता था और यह फोर्ट अरावली पर्वत पर स्थित घोड़े की नाल के आकार का बना हुआ है। आजादी के बाद इस महल को राजा राजेंद्र सिंह चौहान ने छोड़कर अपना स्थान विजय बाघ में कर लिया, क्योंकि वह जगह खंडहर हो गया था। राजा राजेंद्र सिंह ने यह महल 1986 में अपने निजी लोगों के बीच दिया जिन्होंने इसे नया स्वरूप प्रदान किया, जिनको यह महल बेचा गया, उन्होंने इस महल की खूबसूरती को गिरने नहीं दिया इसकी उत्कृष्ट वस्तु कला के कारण महल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है।

जल संरक्षण और स्थापत्य कला का अनमोल धरोहर

महल के उत्तर दिशा में स्थित 350 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक बावड़ी, जो जल संरक्षण और स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है, अब राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों में शामिल हो चुकी है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है। यह नौ मंजिला बावड़ी, जो विक्रम संवत 1740 में राजा मानसिंह देव द्वारा बनाई गई थी, 250 फीट गहरी है और इसमें 150 सीढ़ियां हैं, जो हर मंजिल को एक-दूसरे से जोड़ती हैं।

इसके निर्माण में एक लाख 25 हजार चांदी के सिक्के लगे थे। बावड़ी की प्रत्येक मंजिल पर राजपूत शैली की नक्काशी, कलात्मक झरोखे और कक्ष बने हैं, जो गर्मी में शीतलता का एहसास कराते थे। यह न केवल जल संरक्षण की संरचना का बेहतरीन नमूना है, बल्कि पर्यटकों के आकर्षण का भी प्रमुख केंद्र बन चुकी है।

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