Rajasthan war history: राजस्थान, पौराणिक साहित्य के साथ-साथ यहां के राजा-महाराजाओं की वीर गाथा और युद्धों के लिए भी जाना जाता है। राजस्थान की भूमि के कण-कण में एक कहानी बसी हुई है। यहां के राजाओं की वीर गाथा किसी प्रेरणा से कम नहीं है। यहां के राजाओं ने बडे़-बडे़ मुगल बादशाहों को पराजित कर उनके सम्राज्य को भारत में खत्म कर दिया। इस लड़ाई के कुछ अवशेष आज भी राजस्थान में दिखाई देता है। जिसे लोग देखने दूर दूर से आते हैं। उस युद्ध वाले स्थान के इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं। आज हम ऐसे ही कुछ युद्धों के बारे में जानेंगे, जो योद्धाओं की वीरता की गाथा को बताता हो। 

राजस्थान का युद्ध (712-740 ई.)

राजस्थान का युद्ध भारत की एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध में बप्पा रावल की सशस्त्र सेना, चालुक्य विक्रमादित्य द्वितीय और नागभट्ट सभी एक साथ मिलकर अब्बासिद के खिलाफ युद्ध किया था, जिसमें हिन्दू शासकों की जीत हुई थी‌। यह युद्ध अल-जुनैद इब्न अब्द अल-रहमान अल-मुरी ने नेतृत्व में हुआ था। इसलिए इसे भारतीय शासकों के लिए एक बड़ी जीत माना जाती है।

चित्तौड़ का  युद्ध (1303)

चित्तौड़ में अकबर और हिंदू राजपूतों के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। यह लड़ाई अलाउद्दीन खिलजी और राजा रावल रतन सिंह के बीच हुई थी। जो लगातार आठ महीनों तक चली, जिसमें राजा रतन सिंह की हार हो गई थी। इसके बाद चित्तौड़ पर अकबर का शासन हो गया। 

नागौर का युद्ध (1455)

नागौर सल्तनत और मेवाड़ के राजपुर राजवंश के बीच 1455 में यह युद्ध ड़ा गया था। यह युद्ध नागौर के सुल्तानों के दो भाइयों के बीच विवाद होने पर आरंभ हुआ था। इसके बाद इसी लड़ाई को लेकर मुजाहिद खान और शम्स खान के बीच लड़ाई शुरू हो गई‌ और वह बाद में अपने भाई शम्स खान से हार गए। इसके बाद मेवाड़ के शासक राणा कुंभा से सहायता मांगी।

इसके बाद राणा कुंभा एक विशाल सशस्त्र बल के साथ नागौर पर हमला करने चला गया। इसके बाद मुजाहिद खान परास्त हो गया और फिर वापस मेवाड़ लौट गया। ऐसा माना जाता है कि दो भाइयों के बीच विवाद के वजह से एक बार फिर से संपन्न राज्य का विनाश हो गया। 

हल्दीघाटी का युद्ध (1576)

हल्दीघाटी का युद्ध राजस्थान के इतिहास का सबसे प्रमुख लड़ाइयों में से एक माना जाना जाता है। इस युद्ध को महाराणा प्रताप की वीरता के लिए याद किया जाता है। दरअसल यह लड़ाई राजपूत मान सिंह द्वारा लड़ा जा रहा था, लेकिन इस लड़ाई के नेतृत्व अकबर की सेना द्वारा किया जा रहा था। लेकिन फिर भी महाराजा प्रताप ने मुगल सेना के खिलाफ निडर होकर युद्ध किया। इसके बाद प्रताप को जीत हासिल हो गई। इनकी वीरता का आज भी प्रमाण दिया जाता है। 

खानवा का युद्ध (1527) 

खानवा का युद्ध राजपूत संघों और मुगल डोमेन के बीच 1527 में शुरू हुआ था। इस युद्ध को इसलिए भी जाना जाता है, क्यों कि यह पानीपत युद्ध के बाद सबसे लंबी चलने वाला युद्ध है। इस युद्ध में राजपूत संघो का जीत हुआ और भारत में मुगल साम्राज्य का पतन हो गया।