Rashidpur Khori आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे अनोखे गांव के बारें में बताएंगे जहां के रेलवे स्टेशन को कोई सरकारी कर्मचारी नहीं चलाता है, बल्कि उसे गांव के लोगों द्वारा संचलित किया जाता है। यह गांव सीकर-चूरू मार्ग पर बसा हुआ है और इसका रसीदपुर खोरी नामक स्टेशन ग्रामीणों द्वारा चलाया जाता है।
दरअसल, 1942 में इस स्टेशन को स्थापित किया गया था, लेकिन कम आय के कारण इसे 2004 में सरकार द्वारा बंद कर दिया था। लेकिन ग्रामीणों के संघर्ष के बाद रेल मंत्रालय की ओर से यहां हरी झंडी दिखाई गई।
ग्रामीणों की मेहनत से फिर से शुरू हो पाया स्टेशन
गांव के लोगों द्वारा दिखाई गई हिम्मत और समर्पण के कारण ही 2004 में बंद हुए स्टेशन को फिर से शुरू किया गया। सीकर-चूरू के रास्ते पर बने रसीदपुरा खोरी रेलवे स्टेशन को शुरू करने से पहले ग्रामीणों ने रेलवे की शर्त के मुताबिक लाखों रूपए खर्च कर अपने स्तर पर 5 साल तक स्टेशन को संचालित किया।
2015 में फिर शुरू हुई थी मुहिम
जानकारी के लिए बता दें कि साल 2015 में इसे दोबारा बंद करने का खतरा मंडाराया था, जिसके बाद एक बार से ग्रामीणों ने मिलकर इस स्टेशन को बचाने के लिए संघर्ष किया था। काफी लंबे समय के बाद सरकार की ओर से इस स्टेशन को हरी झंड़ी दिखाई गई। आज के समय में यहां 20 करोड़ की लागत में एख हाईटेक बना हुआ है, जिसमें 9 कर्मचारी काम कर रहे हैं।
अधिकारी नहीं होने के बावजूद लोग खरीदते हैं टिकट
भारत का यह एक मात्र ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां पर आपको रेलवे की ओर से कोई अधिकारी देखने को नहीं मिलेगा और ना ही कोई कर्मचारी। लेकिन इसके बावजूद भी यहां ट्रेने रूकती है और यात्री टिकट खरीदते हैं। इन टिकटों का पैसा सीधे रेलवे के खाते में जाता है। 2009 से अब तक ग्रामीणों द्वारा ही इस स्टेशन का काम देखा जा रहा है। गांव के लोग ही यात्रियों की टिकट काटते है और खुद ही स्टेशन को अपने घर जैसे साफ-सफाई करते हैं।