Siwana Fort: राजस्थान के हर जिले का हर किला अपने साथ इतिहास की दास्तां को बयां करता है। कई किले उस समय की कलाकारी को दर्शाते हैं, तो कई अपने इतिहास से लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं। इन्हीं किलों में से एक है पर्वत शिखरों के बीच में खड़ा मारवाड़ का सिवाना किला, जो आज भी योद्धाओं की वीरता और शौर्य का साक्षी है। किले को 10वीं सदी में राजा भोज के बेटे नारायण पंवार ने बनवाया था।  

किले से जुड़ा इतिहास

कालान्तर के समय इस किले का अधिकार जालौर के सोनगरा चौहानों और अलाउद्दीन खिलजी के हाथ में था। वर्ष 1538 में इस दुर्ग को जीत कर राव मालदेव ने किले की व्यवस्था और सुरक्षा को ठीक करने का दृढ़ किया साथ ही किले के चारों तरफ परकोटे का निर्माण कराया। मुगल शासक अकबर ने इस किले को रावमालदेव से लेकर उसके बेटे रायमल को भेंट में दिया था। इसके बाद दुर्ग पर रायमल के पुत्र कल्याण सिंह उर्फ कल्ला का राज रहा जिसने अपनी वीरता से सिवाना को गौरव और सम्मान दिया। कल्ला से नाराज होने पर अकबर ने जोधपुर के महाराजा उदयसिंह को किले पर हमला करने के लिए कहा।

इस युद्ध में कल्याण सिंह वीरगति को प्राप्त हुए साथ ही उनकी पत्नी हाड़ी रानी ने किले में अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया था। माना जाता है कि युद्ध में कल्याण सिंह ने अपने शौर्य और अपनी वीरता का उदाहरण दिया था। यहां तक कि सिर कटने के बावजूद वे युद्ध में आखिरी सांस तक लड़ते रहे। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में आज भी दो समाधियां बनी है, जिसमें एक समाधि कल्याण सिंह के धड़ की है और दूसरी उनके सिर की है।   

क्या है किले में मौजूद तालाब का रहस्य

बता दें कि किले में एक तालाब भी है, ऐसा माना जाता है कि कई सालों से इस तालाब में कभी भी पानी कम नहीं हुआ है। चाहें अकाल पड़े या कितनी भी गर्मी हो लेकिन इस तालाब में हमेशा पानी रहता है। आज तक इस तालाब की गहराई का कोई पता नहीं लगा पाया है।