Rajasthan: राजस्थान की धरती पर ग्रामीण परंपराओं और शाही ठाट-बाट का अद्भुत मेलजोल देखने को मिलता है। राजस्थान ऐसा राज्य है जो अपनी शाही गौरवमयी इतिहास और भव्य वास्तुकला के साथ साथ अपने ग्रामीण जीवन की सादगी और संघर्षों का अद्भुत संगम है। शाही और ग्रामीण जीवन के बीच का अंतर राजस्थान की विविधता को दर्शाता है, जो भारतीय संस्कृति का बेजोड़ मिश्रण है। यहां के महल किले और गांव सभी मिलकर राजस्थान की विविधता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते है। राजस्थान की धरती का हर कदम एक नया अनुभव और अनूठी कहानी कहता है। 

शाही इतिहास और वास्तुकला

राजस्थान का शाही इतिहास और वास्तुकला दोनों ही अत्यधिक समृद्ध और विविधतापूर्ण हैं। राजस्थान की शाही धरोहर को उसकी किलों, महलों, हवेलियों, मंदिरों और उनके अद्वितीय वास्तुकला में देखा जा सकता है। राजस्थान का शाही इतिहास मुख्य रूप से राजपूतों से जुड़ा हुआ है । राजस्थान के पहले राजपूत राज्य चित्तौड़गढ़ और अजमेर से थे।

राजपूतों का इतिहास रणभूमि में वीरता और बलिदान की कहानियों से भरा हुआ है। राजपूतों का हल्दीघाटी युद्ध (1576) प्रसिद्ध है, जिसमें महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। इसी तरह, राणा सांगा की वीरता और महाराणा रानी दुर्गावती के संघर्ष भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थान में विभिन्न राजपूत राजवंशों का अस्तित्व था, जैसे की सिसोदिया, ठाकर, चौहान, राठौड़, सोलंकी आदि। 

इतिहास और कला का प्रतीक माना जाता है यह किला 

राजस्थान में किलों का महत्वपूर्ण स्थान है, जो राज्य की सैन्य ताकत और सुरक्षा का प्रतीक माने जाते हैं।  चित्तौड़गढ़ किला राजस्थान का सबसे बड़ा किला है, जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। मेहरानगढ़ किला जोधपुर शहर पर स्थित है और राजस्थान के किलों में सबसे प्रसिद्ध है।आमेर किला जयपुर में स्थित है,  यह किला एक सुंदर उदाहरण है राजपूत वास्तुकला का, जो अपनी दीवारों, महलों और बगीचों के लिए प्रसिद्ध है।

राजस्थान का सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता

राजस्थान में शाही संस्कृति और ग्रामीण जीवन के बीच एक और बड़ा अंतर धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता में है। यहां विभिन्न जातियों, धर्मों और समुदायों के लोग मिलकर रहते हैं। जैन धर्म, हिन्दू धर्म, सिख धर्म और मुस्लिम धर्म के अनुयायी यहाँ रहते हैं, जो अपने-अपने तरीके से अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हैं। यहां के मेले, त्योहार, पूजा-पाठ और पारंपरिक संगीत राजस्थान की लोक-परंपराओं को जीवित रखते हैं।