Bikaner Sthapna Diwas:  बीकानेर अपने 538वें स्थापना दिवस को मनाने जा रहा है। इसी बीच आज हम आपको बताने जा रहे हैं बीकानेर की एक परंपरा के बारे में जिसमें लोग पतंग की जगह कागज के बने चंदे उड़ाते हैं । आईए जानते हैं क्या है यह परंपरा। 

कागज के बने चंदों को उड़ाने की परंपरा

यूँ तो भारत में पतंग उड़ाना आम बात है लेकिन बीकानेर में इसी प्रथा को कुछ अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर पतंग की जगह कागज के बने चंदें उड़ाए जाते हैं। यह परंपरा स्थापना दिवस के दौरान की जाती है। इन चंदों में पतंग की तरह मांझा नहीं लगा होता बल्कि रस्सियों का इस्तेमाल किया जाता है। 

इस परंपरा की कहानी बीकानेर के संस्थापक राव बीका से जुड़ी हुई है। ऐसा कहां जाता है कि उन्होंने ही सबसे पहले चंदा उड़ाई थी।  उनका उद्देश्य अपने लोगों से बात करना था। आसान शब्दों में कहें तो यें चंदे एक दृश्य संदेशवाहक के रूप में कार्य करते थे। दरअसल राजा कोई भी समाचार या चेतावनी साझा करने के लिए इन चंदों का इस्तेमाल करते थे।

कैसे बनता है चंदा

स्थापना दिवस से पहले बीकानेर के कारीगर इन चंदों को बनाने के काम में लग जाते हैं। इन्हें लेजर पेपर से तैयार किया जाता है। हर चंद 4 फीट के आकार का होता है। सरकंडे की लकड़ी के साथ कितने मजबूत किया जाता है और किनारों पर पाग के कपड़े चिपकाए जाते हैं। एक चंदा को बनाने में 4 से 5 दिन लगते हैं।

बीकानेर में कृष्ण चंद्र पुरोहित हैं जो पिछले 32 वर्षों से चंदा बना रहे हैं। इस परिवार की चौथी पीढ़ी अब इस परंपरा को संरक्षित कर रही है। जब यह चंदे हवा में जाते हैं तो आसमान में उड़ते वक्त बीकानेर की विरासत और एकता का परचम लहराते हैं।

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