Chittorgarh Ka Kila : राजस्थान, भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में एक है। इसमें से ही एक चित्तौड़गढ़ का किला भी है। यह किला अपनी अद्भुत सुंदरता और समृद्धशाली इतिहास के लिए दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। चित्तौड़गढ़ किले से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। 

किले का ऐतिहासिक बैकग्राउंड 

चित्तौड़गढ़ किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक राजपूत शासकों का एक प्रमुख केंद्र रहा। ऐसा माना जाता है कि इसे मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने 7वीं शताब्दी में बनवाया। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों द्वारा हुआ था, लेकिन इस पर कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

भारत का सबसे विशाल किला

यह किला भारत का सबसे विशाल किला है। चित्तौड़गढ़ किला भीलवाड़ा से कुछ किलोमीटर दक्षिण स्थित है। इस किले में सात मुख्य दरवाजे हैं, जो इसकी सुरक्षा और सुंदरता को बढ़ाते हैं। इसके अलावा किले के अंदर बुर्ज, महल, मंदिर और जलाशय इस किले की भव्यता को और भी बढ़ाते हैं। ऐतिहासिक महत्व की वजह से इसे 21 जून, 2013 को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। 

16 हजार दासियों के साथ किया जौहर

चित्तौड़गढ़ किला अपने पहले जौहर के लिए भी प्रसिद्ध है। रावल रतनसिंह के शासनकाल में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान रानी पद्मिनी ने अपनी 16,000 दासियों के साथ यहां पहला जौहर किया। इसके बाद, राणा विक्रमादित्य के समय में 1534 में रानी कर्णवती ने दूसरा जौहर किया। वहीं, 1568 में राणा उदयसिंह के समय में तीसरा जौहर हुआ, जिसमें पत्ता सिसौदिया की पत्नी फूल कंवर ने नेतृत्व किया।

रानी पद्धिनी की देखी थी झलक

इस किले में एक विजय स्तंभ है, जो कि 122 फुट (लगभग नौ मंजिल) ऊंचा है। इसे महाराजा कुम्भा ने 1440 - 1448 में बनाया था। इसके अलावा किले में जलाशय के बीचोंबीच स्थित पद्मिनी महल है। अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी की झलक इसी महल में देखी थी। इसके अलावा राणा कुम्भा का महल भी है, जहां रानी पद्मिनी ने जौहर किया था।