Sikar King Kalyan Singh: राजस्थान राजाओं का प्रदेश रहा है। यहां का इतिहास, राजवाड़ी शान, किले ही इसे देश के अन्य राज्यों से अलग बनाते हैं। राजस्थान में एक जिला है सीकर, जिसे 'शिक्षा की नगरी' नाम से भी जाना जाता है। सीकर का पुराना नाम 'बीरभान का बास' था। बाद में इसका नाम सीकर पड़ा। आज हम आपको सीकर के अंतिम राजा राव कल्याण सिंह से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने सीकर को शिक्षा की नगरी बनाया। 

31 साल किया राज

सीकर के 11वें राजा कल्याण सिंह का जन्म 20 जून 1886 को दीपपुरा में हुआ था। उन्होंने साल 1922 से 1967 तक सीकर पर शासन किया। हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि कल्याण सिंह सीकर के दसवें राजा राव राजा माधव सिंह बहादुर के पुत्र नहीं बल्कि भतीजे थे। दरअसल कल्याण सिंह के पिता का नाम ठाकुर बलवान सिंह था। राजा माधव सिंह और बलवान सिंह दोनों सगे भाई थे। राजा के कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण उन्होंने अपने भाई के बेटे को गोद ले लिया था। 9 जुलाई 1922 को कल्याण सिंह ने सीकर की गद्दी संभाल और 31 साल 11 महीने तक राज किया। 

भारत-पाक युद्ध में सरकार को दी थी 37 क्विंटल चांदी

कहा जाता है कि साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय राजा कल्याण सिंह ने सरकार को आर्थिक मदद देने के लिए 37 क्विंटल चांदी ट्रक में भरवाकर भेजी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा इसे रक्षा कोष में जमा कराया गया था। 

बालिका शिक्षा को दिया बढ़ावा

कल्याण सिंह शिक्षा को लेकर काफी संजीदा थे और उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बालिका विद्यालय खोला। लड़कों के लिए भी जगह-जगह पर स्कूल खोले। बालिका हत्या रोकने के लिए भी काफी महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसी कारण आज पूरे भारत में सीकर को शिक्षा नगरी के नाम से जाना जाता है। राजा कल्याण सिंह भगवान गोपीनाथ के प्रति अनोखी आस्था रखते थे। आज भी सीकर के मुख्य राजा भगवान गोपीनाथ माने जाते हैं। आयोजनों में 'सीकर का राजा गोपीनाथ राजा' नारे लगाए जाते हैं। 

सीकर के वर्तमान राजा विक्रम सिंह चले गए नेपाल

बता दें कि आज के समय में सांकेतिक रूप से विक्रम सिंह को सीकर का राजा माना जाता है। कल्याण सिंह ने इन्हें गोद लिया था। 1947 में भारत की आजादी के बाद राजशाही व्यवस्था खत्म हो गई और कल्याण सिंह के सामने ही उनका राजशाही शासन खत्म हो गया। कल्याण सिंह ने सुभाष चौक का गढ़ अग्रवाल समाज को दे दिया। कल्याण सिंह के निधन के बाद विक्रम सिंह नेपाल चले गए, जहां उनका ससुराल था। उन्होंने नेपाल में ही अपनी बेटियों की शादी भी की। अब कम ही अवसरों पर विक्रम सिंह सीकर आते हैं।

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