Khichan Bird Sanctuary : दुनियाभर में राजस्थान का खींचन पक्षी अभयारण्य प्रसिद्ध हैं। जहां घूमने के लिए देश विदेश से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। खींचन पक्षी अभ्यारण जोधपुर से 171 किलोमीटर दूर फलोदी में स्थित है। अगर आप भी पक्षी प्रेमी है और राजस्थान घूमने का प्लान कर रहे हैं तो एक बार इस अभ्यारण का भ्रमण जरूर करें।

यहां आपको अलग अलग प्रजाति के पक्षी दिखाई देंगे। वहीं इस अभ्यारण में सर्दियों के दिनों में साइबेरिया से प्रवास के लिए कुरजां पक्षियों का एक बड़ा समूह आता है जो इस गांव को दुनिया में एक अलग पहचान दिलाता है। इसलिए
इस गांव को डेमोसाइल क्रेन के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए जानते हैं इस अभ्यारण की क्या है खासियत। 

1970 में हुई अभ्यारण की शुरुआत

सर्वप्रथम 1970 के दशक में कुरंजा पक्षियों का एक झुंड साइबेरिया से इस गांव में आया था। इसके बाद यहां हर साल पक्षियों का आना जाना लगा रहा। जब पहली बार पक्षी यहां आए थे, तब बहुत कम के संख्या में आए थे।

स्थानीय लोगों की मेहनत से दुनिया में मिली पहचान

इस अभ्यारण का संरक्षण शुरुआती समय पर सरकार नहीं करती थी। स्थानीय लोगों की मेहनत से इस अभ्यारण्य को दुनिया में पहचान मिली है। लेकिन‌ अब सरकार के प्रयासों से इस अभ्यारण्य को ओर भी सुन्दर बनाने का कार्य किया जा रहा। वैसे तो यह अभ्यारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। पर्यटकों की पहली पसंद माना जाता है। यहां ठंड के दिनों में हजारों की संख्या में पर्यटक भ्रमण के लिए आते हैं और यहां के पक्षियों के साथ साथ आसपास सुंदर इलाके को देखकर आनंदमय हो जातें हैं।
 

अभ्यारण की मुख्य खासियत

. इस अभ्यारण में आने वाले प्रवासी पक्षी समुद्र को पार कर के राजस्थान के फलौदी गांव में अपना बसेरा बानते हैं। 

. कुरंजा पक्षी का वजन 4-5 किलोग्राम का होता है फिर भी ये पक्षी लगभग 5500 किमी की लंबी दूरी तय कर के क्रेन अभ्यारण में अपना समय बिताना बेहद पसंद करते हैं। 

. यह पक्षी पहले बहुत कम संख्या में आते थे लेकिन अभी के समय में इनकी संख्या 20,000 के करीब पहुंच जाती है। इन प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन ज्वार, नमक, चूना पत्थर और खारा पानी है। 

. इस अभ्यारण में मुख्य रूप से तीन प्रकार के पक्षी हैं जो कि यहां पर प्रवास करते हैं और उन्हें स्थानीय लोग कुरंजा, करकरा और कुंच के रूप में जानते हैं।

. इस अभ्यारण में आने का सबसे अच्छा मौसम नवंबर से फरवरी तक है। क्योंकि इस समय यहां बहुत सारे पक्षी देखने को मिलते हैं। 

. भारत में साइबेरिया से आए कुरंजा पक्षियों को कुर्जन के रूप में जाना जाता है।