Rajasthan Environmental Issues: राजस्थान के बाड़मेर जैसलमेर जिलों में औद्योगीकरण तेजी से बढ़ रहा है। 2003 से प्रदेश में लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है। प्रदेश के जिलों का तेजी से औद्योगीकरण और कंक्रीट के जाल बिछाने का कार्य चल रहा है। साथ ही इस कटाई के बदले में जो पेड़ लगाएं जाते हैं। वो कागजों में तो बहुत ज्यादा होते हैं, लेकिन जमीन पर बहुत कम। जिसके कारण प्रदेश में हीटवेव भी बहुत बढ़ रहा है। प्रदेश के रेगिस्तानी इलाकों में पेड़ पौधों को लेकर लगातार जागरूकता बढ़ रही है। लेकिन दूसरी ओर अंधाधुंध पेड़ो की कटाई चल रही है। जो पर्यावरण और प्रदेश के लिए बड़ा खतरा है। 

प्रदेश में कोयला, तेल, गैस, सौर ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में हुए कार्यों में लाखों बीघा जमीन अब अवाप्त हो चुकी है। यहां की जमीन से भी पेड़ों का नामोनिशान मिटता जा रहा है। इसके अलावा हाइवे, मेगा हाइवे और एक्सप्रेसवे के होने वाले विस्तार ने भी रही कही कसर पूरी कर दी है। 

खंभों ने पेड़ो की जगह ली

बाड़मेर जैसलमेर में हाइटेंशन तारो का जाल बहुत ज्यादा है। जिसके कारण पेड़ो को काटा जा रहा है। बड़े बड़े खंभे लगाने के लिए 1-1 बीघा जमीन जमीन की जरूरत होती है। जिसके कारण एक खंभा लगाने के लिए औसतन 15 से 20 पेड़ काटे जाते हैं। जिसके बदले बाद में पेड़ नहीं लगाए जाते। 

हिटवेव बनी जान की दुश्मन

हीटवेव प्रदेश के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। बाड़मेर जैसलमेर जिलों में तो तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है और प्रदेश का औसतन तापमान 48 डिग्री तक चला जाता है। जिसकी वजह से लोगों की जान भी चली जाती है। 2010 में हीटवेव से ही अहमदाबाद में 4,442 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद अहमदाबाद प्रशासन ने एक्शन प्लान भी बनाया और तापमान को 5 डिग्री तक कम किया गया था। जिसके बाद मौतों का आंकड़ा भी कम हो गया था। इसी तरह राजस्थान सरकार ने भी कुछ ऐसा ही प्लान तैयार किया था, लेकिन उसे अभी तक शुरू नहीं किया गया। आपदा प्रबंधन के पास भी इसे रोक नहीं पा रहा है और न ही कोई योजना तैयार कर रहा है।

इन कामों से मदद मिलेगी

बाड़मेर, बालोतरा और जैसलमेर के अलावा भी अन्य नई नगरपालिकाओं में ऑक्सीजोन बनाए जाने चाहिए और शहरों के पास 30-40 बीघा जमीन इस प्रकार की होनी चाहिए कि वहां केवल पेड़ पौधे हो और शुद्ध हवा का वातावरण हो। शहरों में भूजल स्तर बढ़ने से वाटर लॉगिंग की समस्या बढ़ रही है। साथ ही सफेदा नामक पेड़ो को अधिक लगाना चाहिए। जो पानी को ज्यादा सीखते है और पर्यावरण के लिए अच्छे होते हैं। शहर में ओरण गोचर जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराई जानी चाहिए। इस जमीन पर पौधे लगाकर इस जमीन का भी संरक्षण किया जा सकता है। 

अधिकारी देते हैं गलत रिपोर्ट 

पेड़ो की कटाई से लेकर पेड़ लगाने तक की सभी जिम्मेदारी अफसरों के हाथ में होती है। वही अफसर कागजों में भी लिखते है कि कितने पेड़ लगे। अभी हाल ही में विधानसभा में बताया गया कि 60,000 पेड़ लगाए गए हैं, लेकिन वास्तव में सच्चाई कुछ ओर ही थी। सरकार को पेड़ लगाने और काटने का जिम्मा स्वतंत्र संस्था या किसी निजी एजेंसी को देना चाहिए, जिससे सही आंकड़े सामने आ सकें।

यह भी पढ़ें -