Chagal Water Bag: गर्मी के मौसम में ठंडे पानी की चाहत किसी अमृत से कम नहीं होता। मानो जैसे रेगिस्तान में जल की चाहत। लेकिन हर किसी के पास रेफ्रिजरेटर की सुविधा नहीं होती, जिससे कि वह ठंडा पानी पी पाते। ऐसे ही ठंडे पानी की चाहत के लिए काम आता है देसी जुगाड। भारत के गांव में बसने वाले लोग अपनी देसी जुगाड़ के लिए मशहूर है।
देसी जुगाड़ का ही सबसे अच्छा नमूना है, चलता फिरता फ्रिज है न तो इसके लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी और न कि किसी बिजली की जरूरत महसूस होगी। बोतल में प्लास्टिक का उपयोग नहीं है जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। देसी फ्रिज को स्थानीय भाषा में छागल या दिवड़ी बोलते है, पुराने समय में इसका नाम पखाल होता था।
बिना फ्रिज के ही जुगाड़ से पानी ठंडा जानें कैसे?
सूती कपड़ों से तैयार किया गया एक प्रकार का थैला जो बोतल के आकार में होता है, इसका ऊपरी हिस्सा बोतल के ढक्कन के आकार का होता है। इसको लकड़ी के टुकड़ों से बंद किया जाता है, इस कपड़े की खास बात यह है कि इसके अंदर रखा गया पानी काफी लंबे समय तक ठंडा रहता है । पहले के अंदर रखा गया पानी हवा के संपर्क में आने से वाष्पित होता जिस कारण पानी ठंडा रहता है, इसको बड़ी आसानी से सहजता के साथ कहीं भी लेकर जाया जा सकता है।
राजस्थान के जालौर में लौट फिर देसी जुगाड़
समय के साथ इसका चलन कम हो गया है। लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में छागल देखने को मिल जाता है। लेकिन राजस्थान के जालौर में छागल का इस्तेमाल दोबारा से किया जाने लगा है। राजस्थान का जालौर गर्म इलाकों में माना जाता है। जिस कारण एक बार फिर यह देसी जुगाड़ जालौर के लोगों के काम में आ रहा है।
छागल को आज भी ग्रामीण लोग तरजीह देते हैं, इसका दाम इतना किफायती होता है कि हर यात्री और कामगरो के साथ देखने को मिल जाएगा। ये पर्यावरण के अनुकूल भी है।
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