Padhay Mata Temple: राजस्थान के पूर्व में बसे डीडवाना में पाढ़ाय माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर लगभग 1175 साल पुराना है। कहा जाता है कि पाढ़ाय माता 8 समाज और 127 गौत्रों की कुलदेवी हैं। माता के एक स्वरूप का मंदिर डीडवाना शहर के कोट मोहल्ले में है, जो लगभग 900 साल पुराना है। इस मंदिर में श्रद्धालुओं की हमेशा भीड़ रहती है। वर्तमान समय में यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। 

8 समाज और 127 गौत्रों की कुलदेवी हैं पाढ़ाय माता

पाढ़ाय माता 8 समाज और 127 गौत्रों की कुलदेवी हैं इसलिए इनके मंदिर अलग-अलग जगह पर कई नामों से बना हुआ है। डीडवाना के कोट मोहल्ले में और मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी मां का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों में लोग अपने बच्चों का मुंडन संस्कार और कई तरह के कार्यक्रम कराने के लिए आते हैं।

भैंसा सेठ को हुआ शक

इस मंदिर को लेकर एक कहानी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि डीडवाना में भैरवलाल सारदा नामक माहेश्वरी रहते थे। लोग उन्हें भैंसा सेठ कहा करते थे। जहां पर माता का मंदिर है, वहां ग्वाले अपनी गायों को चराने आया करते थे। यहां पर एक गाय प्रतिदिन आकर एक कन्या रूपी छोटी सी बच्ची का दूध पिलाया करती थी और घर पर वह दूध नहीं देती थी। जब सेठ को गाय पर शक हुआ तो उसने ग्वाले से कहा कि वो गाय पर नजर रखे। दूसरे दिन ग्वाले ने गाय को बच्ची को दूध पिलाते देखा और घर आकर सेठ को पूरी बात बताई। 

माता के किए दर्शन

सेठ को इस बात पर यकीन नहीं हुआ। इसके बाद वो खुद इस घटना को देखना चाहता था। जब सेठ ने भी इस पूरी घटना को देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ। उस घटना में भैंसा सेठ को ईश्वरीय ज्ञान मिला। लोगों का कहना है कि पाढ़ाय माता ने उस पूरी भूमि को रेत की भूमि बना दिया। हालांकि भैंसा सेठ के कहने पर उन्होंने उस भूमि को नमक के रूप में बदल दिया। तब से अब तक यहां नमक झील बनी हुई है। जिस केर के पेड़ के नीचे गाय बच्ची को दूध पिलाती थी और जहां मां ने सेठ को कन्या रूप में दर्शन दिया था, उसी केर के पेड़ को चीरकर माता प्रकट हुई। 

फटाय माता से बनी पाढाय माता

इसके कारण उन्हें फटाय माता कहा जाता था। धीरे धीरे नाम में परिवर्तन हुआ और वो पाढ़ाय माता के नाम से विख्यात हुई और वहीं पर माता का मंदिर बनाया गया। कहा जाता है कि माता आसोज सुदी नवमी तिथि को प्रकट हुई थी और चैत्र सुदी चतुर्दशी को माता का मंदिर बनाया गया था। इसलिए चैत्र की चतुर्दशी को यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है।