Rajasthan Fashion News: राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा मोजड़ी है, जो विशेष रूप से डीडवाना क्षेत्र में प्रसिद्ध है। राजस्थान में राजा-महाराजाओं के समय से मोजड़ी पहनने की परंपरा चली आ रही है। उस समय, मोजड़ी एक शाही आभूषण की तरह होती थी, जो राजाओं और रानियों के परिधान को और भी शानदार बनाती थी। आज भी, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मोजड़ी पहनना पसंद करते हैं, और विशेष अवसरों पर इसे पहनने का चलन बना हुआ है।

मोजड़ी का निर्माण-

कच्चे चमड़े से खास तैयार मोजड़ी बनाने की प्रक्रिया बेहद श्रमसाध्य होती है। इसके लिए कच्चे चमड़े को 6 महीने तक नमक और अन्य रासायनिक घोल के साथ पकाया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद, चमड़े को तेल से मृदु किया जाता है, जिससे इसे सीधा किया जा सके। पकाने के बाद, इस चमड़े से कुशल कारीगर मोजड़ी तैयार करते हैं।

निंबी खुर्द: मोजड़ी का केंद्र

निंबी खुर्द की मोजड़ी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां की मोजड़ी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से बनाई जाती है, जिससे इसकी गुणवत्ता और खासियत बढ़ जाती है। कारीगर भंवरलाल के अनुसार, यहां की मोजड़ी पर जो कसीदे होते हैं, वे भी हाथ से बनाए जाते हैं, यही कारण है कि निंबी खुर्द की मोजड़ी अन्य स्थानों से अलग और खास होती है।

चार प्रकार से बनाई जाती है मोजड़ी-

सिल्पर मोजड़ी, किसान मोजड़ी, सलू की कढ़ाई, हाई – फाई जलसा मोजड़ी। इसके अतिरिक्त, यहां घोड़े के चाबुक, मोरा, पीछाड़ी, ऊंट के लिए छोटा मोरा, गिरबान, और इंसानों के लिए कमरपट्टा (बेल्ट) भी तैयार किए जाते हैं।

हालांकि समय के साथ मोजड़ी का महत्व कम हुआ है, लेकिन आज भी यह राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है। किसानों के बीच मोजड़ी का प्रचलन आज भी बरकरार है, जो इसकी मजबूती और परंपरा को दर्शाता है। यह न केवल एक पहनावा है, बल्कि यह राजस्थान की कला, संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है।