Badisadri Cave: राजस्थान के भीलवाड़ा को भी पर्यटकों की दृष्टि से आकर्षण का एक बहुत बड़ा केंद्र माना जाता है। भीलवाड़ा के बड़ीसादड़ी में भगवान नगर के पहाड़ों के बीच में बसा हुआ एक गुफा में भगवान भोलेनाथ निवास करते हैं। इस स्थान को एक बहुत बड़ा धार्मिक स्थल के रूप में भी जाना जाता है, जिसकी महिमा अपरंपार है। इसकी मान्यता यह बताई जाती है कि झाला राजवंश ने यहां स्थित ललित सागर बांध के ऊपरी दिशा में पहाड़ों के मध्य एक नेचुरल गुफा की मेन दरवाजे पर 16वीं सदी के आसपास देवों के देव महादेव की एक मूर्ति स्थापित कर एक के साथ तो उद्देश्य पूर्ण किए गए थे।

शाही परिवार के अलावा किसी को जाने की इजाजत नहीं

इस जगह में मुगलों के आतंक के साथ मेवाड़ के प्रमुख ठिकाने के कारण रणनीति के तहत राजमहल व मुख्य बस्ती से दूर पर्वतों में इस आध्यात्मिक केंद्र का निर्माण कराया, जहां पर शाही परिवार के अलावा दूसरा कोई व्यक्ति नहीं जा सकता था। किस जगह पर राजा के परिवार शांतिपूर्वक भगवान का अभिषेक करने आते और सुकून महसूस करते थे।

इतिहासकार बताते हैं कि यहां महाराज सामंत सिंह ने पूजा अर्चना करने के लिए पवित्रीकरण के लिए इस जगह से करीब 300 मीटर की ऊंचाई पर एक धातु का निर्माण करवाया था।  इस जगह पर राजा स्नान करते थे जिसके पानी से मवेशियों के लिए भी पीने का जल एकत्रित हो जाता था। इसके चलते जंगली इलाकों में चलने वाले जानवरों और मवेशियों के लिए भी काफी उपयोगी होता था। इसके बाद इस जगह को पिकनिक स्पॉट भी बनाया गया। 

इसी रहस्यमई गुफा से आते जाते थे दूत 

इस रहस्यमई गुफा के जरिए सीधे प्रतापगढ़ तक जाने का एक गुप्त रास्ता था। इसी अनोखी गुप्त रास्ते से कंठल क्षेत्र से लेकर मालवा तक की खबर लेकर दूत आते और जाते थे। इस गुप्त रास्ते के बारे में दुश्मन को पता नहीं चल जाए इसके लिए इसके द्वारा पर भगवान भोलेनाथ को स्थापित कर दिया। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण किसी को पता ना चले और पूजा अर्चना होते रहे। इस जगह पर एक समय राजा और राजवाड़े का शासन हुआ करता था। उसके बाद यह स्थान निर्जन बंद होने के कारण वीरान हो गया। 

इस स्थान पर अब होता है सत्संग कार्यक्रम

इस जगह पर अभी खुला चौक बनवा दिया गया है, जहां पर अब आए दिन सत्संग का कार्यक्रम चलता है। इस जगह की सबसे बड़ी खासियत है कि जिस जगह पर भगवान भोलेनाथ विराजते हैं वहां पर सावन के महीने में पहाड़ों से टिप टिप कर बंदे गिरती रहती हैं। इसे देखकर ऐसा लगता है कि प्राकृतिक खुद अपने आप को जलाभिषेक कर रही है।