Hinglaj Mata Mandir Salawas: राजस्थान के जोधपुर जिले से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सालावास गांव में माता हिंगलाज का मंदिर है। यह हिंगलाज माता का दूसरा मंदिर है, माता का पहला मंदिर आजादी के बाद के पाकिस्तान में है। इस मंदिर में मूर्ति के ऊपर लाखों टन वजनी पत्थर है। इस शिला को लेकर कहा जाता है कि ये शिला दो पहदों के बीच अधर में लटकी हुई है और माता ने इस शिला को अपनी उंगली पर उठा रखा है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है। गांव वालों का कहना है कि इस मंदिर में माता रानी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
राज जानने की कोशिश करने वालों की होती है मौत
आपको जानकर ये हैरानी होगी कि इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि कोई भी इस मंदिर का राज नहीं जानता है। जिसने भी इस राज को जानने की कोशिश की, उसकी मृत्यु हो जाती है। कहा जाता है कि दो लोगों ने इस बात की परीक्षा लेने की कोशिश की। उन्होंने धागा लेकर इसे नापने की कोशिश की। उन्होंने जमीन से लेकर शिला को नापने के लिए धागा घुमाया, लेकिन अफसोस वो जिंदा वापस नहीं आ पाए। शिला की चोटी से गिरकर उनकी मौत हो गयी। आज भी उन दोनों की समाधि वहां पर मौजूद है।
क्या है मंदिर का इतिहास
जहां पर माता हिंगलाज का मंदिर बना हुआ है, वो 832 ईसवी में मंडोर रियासत का इलाका हुआ करता था। यहां पर पडिहार प्रतिहारों का शासन हुआ करता था। उस समय पर राजपुरोहित दूदो जी कुटुंब के साथ यहां आए थे। उन्होंने जोजरी नदी के पास एक गांव बसाया था, जिसका नाम सालावास है और घड़ाई नदी के पास एक गांव दूदाखेड़ा नाम से बसाया था। उस समय मंडोर राज्य में प्रतिहारों के राज गुरु डावियाल राजपुरोहित हुआ करते थे। उन्हें सालावास गांव की जागीर प्राप्त थी।
माता ने दिए थे दर्शन
माता हिंगलाज दुदो जी के वंशज सेलो जी राजपुरोहित को सपने में दर्शन दिए और बताया कि आपका गांव मेरी पीठ के पीछे बसा हुआ है। अगर आप सब मेरे सामने आकर रहोगे तो आपके गांव का उद्धार होगा। इसके बाद सेलो जी राजपुरोहित 1392 ईसवी में भाकरी पर स्थित मंदिर के आगे आकर बस गए। यही राजपुरोहितों का बास बाद में सालावास कहलाया।