Lodurva Shiv Temple: राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित लोद्रवा गांव में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां सदियों से विधिवत पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। इतिहासकारों के मुताबिक 1178 ई. में मोहम्मद गौरी जब भारत आया था, तब वह इसी रास्ते से आया था। भारत में उसने कई मंदिरों को तोड़कर खंडित किया था, उन्हीं में से एक है चतुर्मुखी शिव मंदिर, जहां पर रखी भगवान शिव की मूर्ति को तोड़कर खंडित कर दिया था। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक खंडित मूर्ति की ना तो पूजा की जाती है और ना ही अभिषेक किया जाता है। 

इसी कारण से आज तक इस मंदिर की मंदिर में मौजूद भगवान शिव की मूर्ति पर ना अभिषेक हुआ है और ना ही पूजा की गई है। हालंकि गांव के लोग मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करते है और मूर्ति के आगे दीपक जलाते हैx, लेकिन विधिवत पूजा या रुद्राभिषेक नहीं किया जाता है। 

चतुर्मुखी शिव की मूर्ति

लोद्रवा में स्थित मूमल की मेडी भारत-पाकिस्थान के दो प्रमी मूमल–महिंद्रा की कहानी के लिए जाना जाता है। उसकी के पास में शिवजी का यह प्राचीन मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अंदर चतुर्मुखी शिवलिंग है, इसपर भगवान शिव का चेहरा उकेरा हुआ है। माना जाता है कि यह देश की एक मात्र ऐसी चतुर्मुखी शिव प्रतिमा है जो खंडित है। 

1178 में मोहम्मद गौरी ने किया था खंडित 

जैसलमेर में भाटी वंश से पहले परमार वंश का राज हुआ करता था। कहते हैं परमार वंश भगवान शिव के उपासक हुआ करते थे। इसी कारण से उन्होंने जैसलमेर कई शिव मंदिर स्थापित कराए थे, लेकिन समय के साथ-साथ बाहरी आक्रमणकारियों ने इन मंदिरों पर हमला किया। मोहम्मद गौरी के द्वारा सन् 1178 में जब मोहम्मद गौरी जब भारत आया था तब उसने इस शिव मंदिर को तोड़ा था।

गांव के युवाओं द्वारा लिया गया जिम्मा 

सदियों से वीरान पड़े इस मंदिर को सजाने का जिम्मा गांव के युवाओं द्वारा लिया गया है। उन्होंने भगवान शिव की मूर्ति पर मालाएं चढ़ाई है, फूल अर्पित किए हैं। शिवजी की आरती भी की गई है, लेकिन इस मंदिर में आज भी रूद्राभिषेक और पाठ-पूजा नहीं की जाती है।

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