Kalika Mata Temple: चित्तौड़गढ के किले के पूर्वी भाग और रानी पद्मिनी महल के करीब स्थित कालिका माताजी मंदिर मां काली के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बताया जाता है कि मां काली यह मंदिर पहले भागवान सुर्य का प्राचीन मंदिर था जिसे सिसोदिया राजवंश के राजा बप्पारावल ने 8वीं शताब्दी में ने तैयार कराया था, लेकिन जब मुगलों ने चित्तौड़गढ के किले पर हमला किया था तब उन्होंने स्थपित मूर्तियों को खंडित कर दिया था। कई वर्षों तक मंदिर इसी हालात में रहा।
जिसके बाद महाराणा हमीर सिंह ने 14 वीं शताब्दी में मां भद्र कालिका का भव्य मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। इस मंदिर की खास बात यह है कि महाराणा लक्ष्मणसिंह द्वारा 16वीं सदी में जलाई गई अखंड ज्योत आज भी माता के मंदिर के गर्भ गृह में जल रही है। मां कालिका को सम्पूर्ण मेवाड़ की महारानी और रक्षक के रूप में पूजा जाता है।
भारत कई राज्यों से लोग यहां मां कालिका के दर्शन करने आते है। ऐसा कहा जाता है कि माता कालिका के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते है। कालिका माता को परिहार वंश की कुलदेवी के रूप में भी जाना जाता है, राजवंश आज भी अपनी इष्ट देवी कालिका माताजी और कुलदेवी बाण माताजी के दर्शन करने मंदिर में आते है।
स्थानीय लोगों और मंदिर के पुजारी के मुताबिक इस मंदिर से जुड़ी एक कथा है- हर रोज की तरह महाराजा भैंसे की बली चढ़ाने मंदिर मे आते थे, एक दिन जब उन्हें मंदिर जाने में थोड़ा समय लग गया था तब मंदिर के पुजारी को लगा कि आज महाराजा नहीं आएगें इसके बाद पुजारी ने खुद ही भैंसे की बलि चढ़ा दी थी। जब महाराजा मंदिर में पंहुचे तक उन्होंने देखा कि बलि तो पहले से चढ़ी हुई तब वे पुजारी पर बहुत गुस्सा हुए और पुजारी को मारने के लिए तरवार निकालने लगे।
महाराजा के क्रोध से पुजारी भाग कर बलि प्रसाद पर रखे कपड़े को लेकर गर्भ गृह मे छुप गऐ। जब राजा ने देखा कि थाल में कपड़ा नहीं हैं और उसके बदले दलिया रखा हुआ है तब वे यह चमत्कार देखकर चौंक गए। इसके बाद राजा का गुस्सा शान्त हुआ और राजा ने मंदिर के पुजारी और मां काली से माफी मांगी, जिसके बाद दोनों ने माँ कालिका का धन्यवाद किया और पूरे गांव में जयघोष किया।