Khatu Shyam Ji Mandir : खाटू श्याम बाबा को 'हारे का सहारा' और 'तीन बाण धारी' के नाम से जाना जाता है। देश भर में खाटू श्याम के बहुत मंदिर है, जो बहुत मशहूर हैं। खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर में स्थित है। मंदिर में भक्त दूर-दूर से अपनी मन्नत लेकर पहुंचते हैं। 

यह माना जाता है कि खाटू श्याम भक्तों के सारे दुख-तकलीफ मिटाकर उनका सहारा बनते हैं, खाटू श्याम जी भीम के पोते हैं और घटोत्कच के बेटे, बर्बरीक है। इस बात का वर्णन महाभारत के युद्ध में मिलता है। भक्तों का ये मनाना है कि खाटू श्याम जी भगवान कृष्ण के कलयुगी अवतार हैं।

ऐसे हुआ था मंदिर का निर्माण 

मंदिर का निर्माण खाटू गांव के राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था, क्योंकि राजा को सपने में बर्बरीक का शीश, मंदिर में स्थापित करने का आदेश प्राप्त हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि खाटू श्याम के कुंड पर बर्बरीक जी का शीश मिला था, इसी वजह से इस कुंड की बहुत मान्यता है।

बाबा श्याम ऐसे करते हैं भक्तों की अरदास पूरी 

खाटू श्याम के पास जो भक्त सच्चे मन से एक गुलाब चढ़ाते हैं, खाटू वाले बाबा उन भक्तों की सारी मुराद पूरा करते हैं। बाबा श्याम भक्त के सारी गलती माफ करते हैं। भक्त खाटू बाबा को इत्र भी उपहार के तौर पर चढ़ाते हैं।  ऐसा मान जाता है कि ये करने से भक्त के परिवार में सुख-शांति और समृद्धि हमेशा बनी रहती है। बाबा श्याम की कृपा की प्राप्ति भी होती हैं।

कैसे बने बर्बरीक कलियुग के श्री कृष्ण अवतार

बर्बरीक की माता का नाम अहिलवती और पिता का नाम घटोत्कच था, इन्होनें महाभारत के युद्ध में जाने की इच्छा अपनी माँ से की थी। माँ ने अनुमती दी तो बर्बरीक ने पूछा कि माँ मैं युद्ध में किसका साथ दू? माँ ने बोला कि जो हार रहा हो, तुम उसका ही सहारा बनाना। युद्ध में पहुंच कर बर्बरीक ने अपनी माता के वचन का पालन किया। वहां पहुंचकर उनकी मुलाकात जगत के पालनहार भगवान श्री कृष्ण से हुई जो इस युद्ध के अंत को अच्छे से जानते थे। भगवान श्री कृष्ण ने विचार किया कि अगर बर्बरीक कौरवों का सहारा बने तो पांडव हार जाएंगे, इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक यहाँ सोच में पड़ गए थे कि कोई मेरे से मेरा शीश क्यों मांग रहा है? श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सामने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया था। जिससे बार्बरिक ने ब्राह्मण से कहा कि आप अपने असली रूप में दर्शन दें तब श्री कृष्ण ने अपने असली रूप में बर्बरीक को दर्शन दिए, उसके बाद बर्बरीक ने अपना शीश तुरंत श्री कृष्ण को दान कर दिया। 

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कृष्ण ने बर्बरीक से कहा

श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि कलियुग में आपकी पूजा मेरे नाम के साथ होगी।ऐसी मान्यता है कि जहां पर बर्बरीक जी का शीश रखा गया, वहीं पर मंदिर बनवाया गया।