Lok Devta Mamadev: राजस्थान एक ऐसा राज्य है कि जहां अनेकों वीरों की गाथाएँ सुनने को मिलती हैं। यहाँ लोकदेवताओं का समृद्ध इतिहास है। इसी इतिहास में एक नाम आता है लोकदेव मामादेव का जिनकी पश्चिमी राजस्थान मे पूजा की जाती है। बड़ी बात ये है कि इनकी कोई मूर्ति या फोटो लगाकर पूजा नहीं की जाती, बल्कि तोरण लगाकर पूजा की जाती है। ये तोरण कोई मामूली तोरण नहीं है, इसमें कई चिन्ह और छवियां होती हैं और ये लोगों की आस्था का केंद्र है जिसे मामादेव मानकर उनकी पूजा की जाती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उदयपुर के लोक कला मंडल में भी मामादेव के पारंपरिक काष्ठ शिल्पियों की तरफ से तैयार किया गया तोरण रखा गया है। इस तोरण को अन्य देवी-देवताओं की तरह गाँव मे स्थापित नहीं किया जाता, बल्कि गांव के बाहर की मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है। ये तोरण पांच फीट तक की ऊंचाई के लिए होता है।
क्यों होती है तोरण की पूजा
कहा जाता है कि मामादेव अपना विवाह कराने गए थे लेकिन उनका विवाह नहीं हो पाया। विवाह से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी और तोरण नहीं मारा। इसलिए तोरण को उनकी स्मृति मे प्रतीक चिन्ह मानकर उसकी पूजा की जाने लगी। मान्यता है कि इस प्रतीक चिन्ह की पूजा करने से गांव में महामारी नहीं फैलती और पूरा गांव संपन्न रहता है। आदिवासी और किसानों मे मामादेव का खासा महत्व है।
तोरण मे होते हैं ये चिन्ह
ये तोरण खंडीय से लेकर आठ खंडीय तक का होता है। एक खंड तोरण मे घुड़सवार अंकित होता है और उसपर सिंदूर चढ़ाया जाता है। वहीं आठ खंड तोरण में हर खंड के दोनों तरफ घोड़ा, ऊपर मोर मुख बना होता है। वहीं इसकी ऊपरी सतह में शेर और वीर पुरुष का चित्र होता है। इसे अलावा इसमें तलवार, भाला और वीर पुरुष सबसे ऊपर अंकित होता है।
इस मंदिर मे है मिट्टी की मूर्ति
मामादेव का एक ऐसा मंदिर है जहाँ इनकी मिट्टी की मूर्ति है। रामनवमी को राजस्थान के सीकर में मेला लगता है। मेवाड के इतिहास मे लिखा है कि कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा कुम्भा द्वारा बनाया गया मामादेव का एक मंदिर है, जहां कुंभा पूजा किया करते थे। इस मंदिर में मामादेव की तोरण न होकर उनकी पुरानी मूर्ति है कहा जाता है कि मामादेव बरसात के देवता हैं, अगर वो रूठ जाये तो राजस्थान मे अकाल पड़ जाता है।