Lokdevta Ramdev: हमारा देश कहने के लिए तो बहुत आगे बढ़ चुका है, लेकिन कई जगहों पर लोगों की सोच आज भी छुआछूत और जात पात पर आकर रुक जाती है। काफी लोग आज भी इन सब चीजों को झेल रहे हैं। बहुत से लोगों ने आगे बढ़कर इस फांसले को कम करके जात-पात का भेद मिटाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी अब भी बहुत दूर है। आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे लोक देवता से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने जात पात को मिटाने की काफी कोशिश की। उनका नाम है लोकदेवता बाबा रामदेव।
हिंदू संत होने के बाद भी हैं पीर
लगभग 638 साल पहले राजस्थान के लोकदेवता बाबा रामदेव जिन्हे रुणेचा भी कहा जाता है, उन्होंने छुआछूत और जात पात को खत्म करने के लिए समाज के उपेक्षित वर्ग को अपनाया था। उन्होंने उस वर्ग को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए लोगों को जागरूक किया। बाबा रामदेवरा ने कभी भी हिंदू-मुस्लिम में फर्क नहीं किया। इसी कारण 600 साल बाद भी राजस्थान में उनकी पूजा की जाती है। एक हिंदू संत होने के बावजूद भी उन्हें पश्चिमी राजस्थान में पीर के रूप में पूजा जाता है। उनके प्रति लोगों की अटूट आस्था है।
बाबा रामदेव का जन्म और मंदिर का स्थान
वैसे तो राजस्थान में बाबा रामदेव के बहुत से मंदिर हैं, लेकिन इनका मुख्य मंदिर रामदेवरा में है। यह मंदिर राजस्थान के जैसलमेर के पोखरण से लगभग 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा गांव मे है। बाबा रामदेव के पिता का नाम राजा अजमल तंवर था और उनकी माता का नाम मैणादे था। कहा जाता है कि उनके कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण राजा ने अपनी पत्नी के साथ द्वारका जाकर श्रीकृष्ण की भक्ति की और उनके दो पुत्र हुए। उनके नाम बीरमदेव और रामदेव रखे गए, उन्हें कृष्ण का अवतार कहा जाने लगा। बाबा रामदेव का जन्म कश्मीर के उंडु मे विक्रम संवत 1409 में भाद्रपद की द्वितीया को हुआ था।
किए कई चमत्कार
बाबा रामदेव बचपन से ही तेजस्वी बालक थे। उन्होंने कई चमत्कार दिखाये। कहा जाता है कि उन्होंने अपने बाल्यकाल मे गुरु बलिनाथ के सानिध्य में भैरव नाम के एक राक्षस का संहार किया था। उन्होंने समाज सुधारक की भूमिका निभाई और उपेक्षित वर्ग को गले लगाया। बाबा रामदेव के रामदेवरा मंदिर मे हिंदू और मुस्लिम दोनों माथा टेकने आते हैं।
होती है मनोकामना पूरी
स्थानीय लोगों की माने तो बाबा रामदेव ने कम उम्र मे ही काफी चमत्कार किए थे, जिसके कारण उन्हें कलयुग का सच्चा देवता माना जाता है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि उनसे की गयी हर कामना भी पूरी होती है। बाबा रामदेव ने विक्रम संवत 1442 में भाद्रपद की एकादशी को समाधि ले ली थी।