Mora Mata Temple: कई सदियों पहले मंदिरों में बलि देने की परंपरा थी, किसी मंदिर की मान्यता की भगवान जानवरों की बलि से खुश होते हैं, तो कई मंदिरों में लोग अपने ही अंग की बलि चढ़ाते थे। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एक ऐसे मंदिर के बारें में बताएंगे जहां कई सालों पहले मासूम बच्चों की बलि चढ़ाई जाती थी।
यह मंदिर आज भी राजस्थान के दौसा जिले के घूमना मांव में बना हुआ है। मोरा माता के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की मान्यता था कि बच्चों की बलि चढ़ाने से मां खुश होती है। नवरात्रि के दुर्गाष्टमी को आज भी इस मंदिर में कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। मंदिर में विराजित माता की मूर्ति सैकड़ों साल पुरानी बताई जाती है। ग्रामीणों के मुताबिक पहले यह मंदिर बहुत छोटा था और उसके आसपास केवल दो ही गढ़ोली और घूमना नामक गांव बसे थे। कई सालों से यहां बच्चों की बलि चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब इसे रोक दिया गया है।
कैसे पड़ा मोरा माता का नाम
मंदिर के पुजारी ने बताया कि सैकड़ों साल पहले इस मंदिर में बच्चों की बलि चढ़ाने के परंपरा थी। एक बार पुजारी ढाई साल के बच्चे को लेकर बलि चढ़ाने के लिए मंदिर ले जा रहा था लेकिन लोगों ने इसका विरोध किया और बच्चे को एक टोकरी के नीचे छुपा दिया। मंदिर में बच्चा ना मिलने पर पुजारी गुस्सा होकर मंदिर से चला गया, जिसके बाद लोगों ने टोकरी में रखे बच्चे को देखा तो उस स्थान पर बच्चे के बदले एक मोर था। इसी कारण से माता के इस मंदिर को मोरा माता मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
बलि की रोक के बाद हुआ मंदिर का निर्माण
बताया जाता है कि इस हादसे के बाद से यहां बलि चढ़ाने पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद से लोगों के मन में माता के लिए आस्था और भी बढ़ गई थी और इसलिए सभी ने छोटे से मंदिर को भव्य मंदिर के रूप में तब्दील कर दिया गया था।