Guru Jambheshwar: राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां कई लोक देवताओं को पूजा जाता है। पशु, पक्षी और मानव हित की रक्षा के लिए इनके द्वारा किए गए कामों के चलते इन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। इनमें से एक है बिश्नोई पंथ की स्थापना करने वाले संत गुरु जंभेश्वर महाराज जी। आज भी लोग इन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं और इनके द्वारा दी गई 29 नियम की आचार संहिता का पालन करते हैं। 

जंभेश्वर महाराज जी 

जंभेश्वर महाराज जी का जन्म 1451 ईस्वी में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था। वे अपने पिता लोहट पंवार और माता हंसादेवी के साथ रहते थे। बताया जाता है कि करीब 7 साल की उम्र तक वे मौन रहे थे जिसके कारण उन्हें  बचपन में गूंगा और धनराज के नाम से बुलाया जाता था।

जंभेश्वर जी को भगवान श्रीकृष्ण का ही अवतार माना जाता है। माता पिता के निधन के बाद उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मानव सेवा में लगा दी। साथ ही उन्होंने 34 साल की उम्र में ही बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। 

बिश्नोई पंथ की स्थापना

बता दें कि सन् 1485 में संत जंभेश्वर जी महाराज ने 34 साल की उम्र में बिश्नोई पंथ की स्थापना की। इस पंथ पर चलने वाले लोग आज भी उनके दिए हुए नियमों पर चलते है। वे सभी जंभेश्वर महाराज को अपना आराध्य समझते है। साल 1536 में संत जंभेश्वर जी लालासर में निर्वाण को प्राप्त हुए और आज भी उनकी समाधि बिकानेर के गांव मुकाम में स्थित है। 

बिश्नोईयों समाज के 29 नियम की आचार संहिता 

संत जंभेश्वर जी बिश्नोईयों समाज के 29 नियम की आचार संहिता की रचना की थी। इसके चलते ही इतिहासकारों ने बीस और नौ नियमों का पालन करने वाले लोगों को बिश्नोई कहा जाने लगा। 

मंदिर में हर साल लगते हैं दो बड़े मेले 

जानकारी के लिए बता दें कि जम्भेश्वर महाराज के मुकाम मंदिर ओर पीलासर मंदिर में सालाना दो बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। पहला मेला फाल्गुन अमावस्या के अवसर पर लगता है और दूसरा आसोज अमावस्या के दिन आयोजित कराया जाता है।

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