Nahar Ganesh Mandir: राजस्थान की राजधानी जयपुर में नहर का गणेश मंदिर स्थित है। नहर के किनारे स्थित होने के कारण से नाम ऐसा पड़ा है। ये मंदिर 250 साल पुराना है, यहां दाहिनी सुंड वाले गणेशजी की पूजा-अर्चना होती है। यहां पर उल्टी स्वस्तिक की बहुत महत्व है। उल्टा स्वस्तिक बनकर भक्त के सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।

ऐसा मिला था मूर्ति को रूप

ब्रह्मचारी बाबा की तंत्र के द्वारा यज्ञ की भस्म से गणेश भगवान की मूर्ति व्यास राम चंद्र त्रिवेदी ने स्थापित की थी। इनकी ही 5वीं पीढ़ी आज भी इस मूर्ति की पूजा-आराधना करती है। यहां पर गणेश जी का सुंध दक्षिण दिशा में है और उनकी मूर्ति भी दक्षिण दिशा में विराजमान है। ऐसी सारी मूर्ति तंत्र विधान के लिए ही होती है।

ब्रह्मचारी बाबा तंत्र गजानन के परम भक्त थे। वो हमेशा गणेशजी की पूजा-अर्चना करते रहते थे। हमारे हिंदू शास्त्रों की कथा के अनुसार पार्वती माता ने अपने मैल से गणेशजी को उत्पान किया था, उसी तरह ब्रह्मचारी बाबा ने यज्ञ में आहुति देकर गणेशजी की ये मूर्ति भस्म से तैयार की थी। गणेश चतुर्थी के मौके पर हर साल गजानन राजशाही पोशाक धारण करके भक्तों को दर्शन देते हैं।

इस गणेश जी महाराज को गोता-पन्नो से शृंगारित कर खास पोशाक और चंडी का मुकुट और आभूषण धारण कराया जाता है। गणेश जी की पोशाक का निर्माण एक महीने पहले से ही शुरू हो जाता है। इनके पोशाक का वजन 20 किलो होता है। गणेशजी को मेहंदी अर्पित की जाती है। साथ ही गणेश जी को सिन्दूर भी चढ़ाया जाता है।

3 दिन के लिए बंद रहते हैं मंदिर के दरवाजे

इस श्रृंगार के दौरान मंदिर के कपाट 3 दिन के लिए बंद रहते हैं। पहले दिन गणेशजी की सुबह 5 बजे मंगला आरती होती है। उसके बाद सुबह 9.30 बजे गणेशजी को दूर्वा अर्पित करते हैं। सुबह 11.30 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक अथर्वशीर्ष और मंत्रोचार कर विधिवत पूजा होती है।

उसके बाद गणेशजी को चूरमे का लड्डू का भोग लगता है। शाम को 7.30 बजे बैंड के साथ महाआरती और पटाखे भी फोड़े जाते है। अगले दिन ऋषि पंचमी की पूजा के अवसर पर सप्तऋषि पूजन होता है। अगले दिन फिर से पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के दरवाजे खुल जाते हैं।

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