Punrasar Hanuman Temple: राजस्थान के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में एक है पुनरासर बालाजी मंदिर जो अंजनि माता के पुत्र हनुमान को समर्पित है। इस मंदिर के प्रति लोगों की काफी आस्था है और दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की स्थापना विक्रम संवत कैलेंडर के वर्ष 1775 में हुई थी। इस मंदिर मे खेजड़ी नाम के पेड़ के नीचे भी हनुमान जी की मूर्ति रखी है। यह मंदिर मुंडन संस्कार के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। हनुमान जी के इस मंदिर में दूर-दूर से लोग मुंडन संस्कार कराने आते हैं। इस मंदिर की खासियत की बात करें तो यहां चढ़ाया जाने वाला प्रसाद इस मंदिर को काफी अलग बनाता है।
हनुमान जी को लगता है विशेष भोग
आपने अक्सर हनुमान जी को प्रसाद मे लड्डू, पूरी, हलवा, नारियल इत्यादि चढ़ाते देखा होगा, लेकिन इस मंदिर में बजरंगबली को ऐसा कोई प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता। इस मंदिर में हनुमान जी को राजस्थानी डिश चूरमा का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को आटा, घी और चीनी मिलाकर बनाया जाता है। वैसे तो मंदिर में भक्तों को काफी शांति मिलती है लेकिन इस मंदिर में सबसे ज्यादा आनंद हनुमान जन्मोत्सव पर आता है।
अकाल पड़ने पर दिए थे दर्शन
इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि विक्रम संवत कैलेंडर के वर्ष 1774 में पुनरासर में भयंकर अकाल पड़ा था। अकाल से परेशान होकर लोग गांव से पलायन करने लगे। इसी गांव मे जयराम दास बोथरा नाम का एक व्यक्ति था, जो ऊंट से भोजन की तलाश मे पंजाब गया। रास्ते में ऊंट का पैर टूट गया और वो भोजन सामग्री ले जाने में असमर्थ था। ऐसे में उसने अपने साथियों से आराम करने को कहा। सोते समय उसे अहसास हुआ कि उसे कोई बुला रहा है, लेकिन उसे कोई भी नहीं दिखा। इसके बाद वो हनुमान जी को याद करके पूछने लगा कि उसे कौन बुला रहा है। इसके बाद हनुमान जी पंडित के रूप में प्रकट हुए और बोले कि परेशान मत हो, अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।
बोथरा परिवार संभालता है मंदिर प्रबंधन
उन्होंने पास में रखी हनुमान जी की मूर्ति की ओर इशारा करके कहा कि तुम जहां जाना इस मूर्ति को साथ ले जाना और गांव पहुंचकर मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित कर देना। गांव की सारी परेशानियां खत्म हो जायेगी। बोथरा ने हनुमान जी से कहा कि मेरा ऊंट घायल हो गया है और वो आगे नहीं जा सकता। हनुमान जी ने कहा कि ऊंट बिल्कुल ठीक है। जब बोथरा ने ऊंट को देखा तो ऊँट बिल्कुल ठीक था। इस घटना के बाद बोथरा ने अपनी यात्रा रोक दी और गांव वापस चला गया। वहां मंदिर बनाकर मूर्ति की स्थापना की। अभी तक इस मंदिर का प्रबंधन बोथरा परिवार ही संभालता है। बोथरा के उत्तराधिकारी ही भगवान हनुमान और इस मंदिर की देखभाल करते हैं।