Rajasthan lokdevta: राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी राठौड़ एक ऐसे लोक देवता है, जिन्होंने गौ रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उन्होंने अपनी जान उस दिन जिस दिन उनकी शादी होनी थी। पाबूजी राठौड़ को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है। मारवाड़ में सबसे पहले ऊंट को लाने का श्रेय भी पाबूजी राठौड़ को ही जाता है। कई सालों से ऊंटों के बीमार पड़ने पर पाबूजी की पूजा की जाती है। इसी कारण से उन्हें ''ऊंटों का देवता'' भी कहा जाता हैं।
पाबूजी का इतिहास
पाबूजी का जन्म 13वीं शताब्दी में चेत्र की अमावस्या को हुआ था और इसी दिन फलोदी के कालूमंड में मेला आयोजित किया जाता है। ''पाबू प्रकास'' के रचयिता महाकवि मोडजी आशिया के मुताबिक लोक देवता पाबूजी का जन्म संवत 1299 में हुआ था। उनकी मां का नाम कमलादे था और उनके भाई का नाम बूढ़ोजी राठौड़ था।
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उनकी बहन का विवाह जिंदराव खींची से हुआ था। जिंदराव खींची से युद्ध के दौरान में पाबूजी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार पाबूजी मारवाड़ एक बार ऊंट लाने के लिए सिंध गए थे। वहां के लंकेउ गांव के जागीरदार के पास से वो ऊंट लेकर आए थे। बता दें कि पाबूजी को ऊंट के देवता के साथ प्लेग के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
ऊंटों के देवता के रूप में पूजे जाते है पाबूजी
राजस्थान के पाबूजी की ऊंटों के देवता के रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इनको मानने पर ऊंटों की रुग्णता दूर हो जाती है। साथ ही उनके स्वस्थ ठीक हो जाने पर भोपे-भोपियां ’पाबूजी की फड़’ भी गाई जाती है। राज्य के कोलू (फलौदी) में पाबूजी को लोक देवता के रूप में पूजे जाते है।
हर साल यहां उनकी स्मृति में मेला का आयोजन किया जाता है। भील जाति के लोग उन्हें इष्ट देवता के रूप में भी पूजते हैं। भील जाती को 'फड़वाले भील' के नाम से भी जाना जाता है। लोगों द्वारा एक कपड़े पर पाबूजी के सामाजिक योगदान को चित्रित कर दर्शाया जाता है। जिसके बाद पूरी रात उस कपड़े को प्रदर्शित कर उनका गुणगान करते है। इस चित्रमय कपड़े को 'पाबूजी की फड़' कहा जाता है।