Jhunjhunu Sati Temple: यह एक ऐसा मंदिर है जो देवता को नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष को समर्पित है इस मंदिर का नाम रानी सती मंदिर है। माता सती का मंदिर राजस्थान के झुंझुनू स्थित है। माता सती को लोग दादी जी कहकर भी पुकारते हैं। परम आराध्य श्री दादी जी की प्रताप और उनकी वैभव अपने भक्तों पर निस्वार्थ कृपा बरसाने वाली मां नारायणी को सब जानते है।
भारत में ही नहीं विदेशों में भी मां के भक्त और उपासक हैं। मारवाड़ी लोगों का कहना है की रानी सती जी शक्ति स्वरूपा का प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थी, जिन्होंने अपने पति की हथियारों को मारकर बदला लिया और फिर अपनी इच्छा से सती हो गई। इस मंदिर के गर्भगृह के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया है कि हम सती प्रथा का विरोध करते हैं।
सती माता का महाभारत काल का इतिहास
इन माता का संबंध महाभारत पांडव पौत्र अभिमन्यु से है। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में कौरवों द्वारा रचाए गए चक्रव्यूह में वीर अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस समय अभिमन्यु की मृत्यु से दुखी उनकी पत्नी उत्तरा सती होना चाहती थी। किंतु गर्भवती होने के कारण भगवान श्री कृष्ण ने उनको सती होने से रोक लिया था। तब उसी समय उत्तरा ने भगवान श्री कृष्ण जी से वरदान मांगा कि वह हर भविष्य के जीवन में अभिमन्यु से विवाहित हो और वह या तो हर जन्म में सुहागन के रूप में रहे या, यदि उसके भाग्य में फिर से विधवा होना है, तो उसे अपने पति के बिना जीवन के अतिरिक्त दुःख से बचा लिया जाए ।
श्री कृष्ण ने उत्तरा को वरदान में कहा था की कलयुग में तू नारायणी के नाम से श्री सती दादी के रूप में विख्यात होगी और लोगों का कल्याण करेगी। सारी दुनिया में तुझे पूजा जाएगा। इस वरदान के फल स्वरुप श्री सती दादी जी सती हुई थी। माता सती का दूसरा जन्म राजस्थान के डोकवा गांव में में हुआ, जिनको शुरुआती बचपन का नाम नारायणी बाई था।
यह बचपन में धार्मिक व शक्तियों वाले खेल खेला करती थी। बड़े होने पर इनके पिता ने उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र शिक्षा और घुड़सवारी की भी शिक्षा दिलाई थी। बचपन से ही नारायणी में दैविक शक्तियों दिखाई देती थी, जिसके कारण उनके गांव के लोग भी आश्चर्यचकित होते थे।
रानी सती माता का इतिहास
सती माता मंदिर का इतिहास काफी पुराना और बेहद ही दिलचस्प है ।इस मंदिर के बारे में कई कहानियां और प्रमाण है ,जिनके अनुसार सती माता राजस्थान में एक राजस्थानी रानी थी । माता सती का जन्म, राजस्थान के डोकवा गांव में में हुआ। माता सती के बचपन का नाम नारायणी बाई था। यह बचपन में धार्मिक व शक्तियों वाले खेल खेला करती थी। बड़े होने पर इनके पिता ने उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र शिक्षा और घुड़सवारी की भी शिक्षा दिलाई थी। बचपन से ही नारायणी में दैविक शक्तियों दिखाई देती थी, जिसके कारण उनके गांव के लोग भी आश्चर्यचकित होते थे।
बाद में नारायणी बाई का विवाह हिसार राज्य के सेठ श्री जालीराम जी के पुत्र तनधन दास जी के साथ बड़े धूमधाम से कर दिया गया। कहानियों के अनुसार एक युद्ध में नारायणी देवी के पति को धोखे से मार दिया जाता है। इसके बाद नारायणी देवी शक्ति बनकर अपने पति का बदला लेती हैं और इस समय अपने पति के साथ ही सती हो जाती है। धीरे-धीरे लोग इन्हें आदि शक्ति मां का रूप मानने लगते हैं और बाद में उनकी खूब पूजा होने लगती है राजस्थान के लोग इस मंदिर को रानी सती दादी के नाम से भी जानते हैं।
सती माता मंदिर की वास्तुकला
यह मंदिर झुंझुनू की पहाड़ियों पर बना हुआ है। यह मंदिर अपनी वस्तु कला के लिए पूरे भारत में विख्यात है। इस मंदिर के कई हिस्सो को कांच के द्वारा सुंदर सजाया गया है। मंदिर के परिसर में हनुमान मंदिर, शिव मंदिर, सीता मंदिर, ठाकुर जी मंदिर और भगवान गणेश मंदिर विराजमान है, जो की सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां पर हर साल एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर के दर्शन के लिए आप प्रतिदिन सुबह 5:00 से लेकर दोपहर 1:00 और फिर दोपहर 3:00 बजे से लेकर रात को 10:00 के बीच कभी भी जा सकते हैं। रानी सती मंदिर में दर्शन करने के लिए कोई भी शुल्क नहीं है।