राजस्थान में एक से बढ़कर एक मंदिर हैं, जहां के रहस्यों के बारे में जानकार दिमाग हिल जाता है। ऐसा ही एक अलवर में स्थित हनुमान मंदिर का है। इस मंदिर को पांडूपोल हनुमान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जहां हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा स्थित है। इस मंदिर का सबसे बड़ा चौंकाने वाली बात यह है कि इसी जगह पर हनुमान जी ने गदाधारी कुंतीपुत्र भीम का घमंड को चकनाचूर किया था।

द्रौपदी के लिए भीम ने ली हनुमान से टक्कर 

इस मंदिर की पुरानी कहानी पर एक नजर डालें, तो ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल की एक घटना के मुताबिक द्रौपदी अपनी रोजाना इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने के लिए गई थी। उसी कड़ी में एक दिन नहाते वक्त नाले के ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुंदर फूल आया। द्रौपदी ने उस फूल को देखकर काफी खुश हुई और उसे अपने कानों के कुंडल बनाने के बारे में सोची।  स्नान के बाद जब द्रौपदी ने भीम से उस पुष्प को लाने के लिए कहा, तो भीम उसकी तलाश में जल की धारा के साथ आगे बढ़ने लगा।

हनुमान जी से जब हुआ भीम का सामना 

उस समय हनुमान जी भीम की परीक्षा ले रहे थे और वो वह वानर का रूप धारण करके रास्ते में लेट गए। जब भीम उसी रास्ते से जा रहे थे तब उसने वानर को हटने के लिए कहा। लेकिन वानर का रूप धारण किए हुए हनुमान जी ने हटने से इनकार कर दिया। हनुमान ने कहा कि तुम यदि चाहो तो मेरी पूंछ को रास्ते से हटा सकते हो। ऐसा उस वानर के कहने पर भीम ने पूरा जोर लगाया, लेकिन पूंछ हिला भी नहीं। उस समय भीम ने उस वानर से पूछा कि तुम कौन हो। उस पर वानर रूपी हनुमान ने उत्तर देते हुए अपने बारे में बताया। इस घटना के बाद कुंतीपुत्रों ने उसी स्थान पर हनुमान जी की प्रतिमा बनाकर पूजा करने लगे। उसी समय से इस जगह पर लेटे हुए हनुमान जी की पूजा होने लगी। 

लगा रहता है भक्तों का तांता 

यह अलवर से करीब 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पांडूपोल भक्तों की आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र आज के समय में बना हुआ है। पूरे साल यहां भक्तों का तांता लगा हुआ रहता है। खासकर मंगलवार और शनिवार को इस जगह पर बेकाबू भीड़ जमा होती है। 

भीम ने अपनी गदा से तोड़ डाला पहाड़ 

महाभारत काल के दृष्टि से इस मंदिर को देखें तो यह सरिस्का वन क्षेत्र में स्थित है। ऐसा बताया जाता है कि युद्ध के दौरान कौरवों और पांडव ने इस क्षेत्र में अज्ञातवास का समय बिताया था। पांडव जब अज्ञातवास काटने के लिए इस वन क्षेत्र में आए थे तब कौरवों को भनक लग गई थी कि पांडवपुत्र यहीं रुके हुए हैं। इनसे बचने के लिए भीम ने अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया कि पहाड़ में आरपार का रास्ता बन गया। उसके बाद से इस जगह को पांडूपोल के नाम से जाना जाने लगा।