Kota Vibhishan Mandir:  राजस्थान के कोटा शहर में भारत का एकमात्र विभीषण का मंदिर स्थित है, जो कोटा से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित कैथून का यह मंदिर 2000 साल पुराना है। खास बात यह है कि हर साल यह मंदिर जमीन के अंदर समाता जा रहा है, इस मंदिर में धुलंडी के मौके पर हिरण्यकश्यप का पुतला जलाया जाता है। 
 
मंदिर से जुड़ी मान्यता

मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर का इतिहास भगवान राम के राज्याभिषेक से जुड़ा है। भगवान राम का राज्याभिषेक हो चुका था व मेहमानों की विदाई की बेला थी, इस दौरान भगवान शिव और बालाजी भारत के भ्रमण को लेकर चर्चा कर रहे थे। यह बात सुनकर विभीषण ने कहा कि भगवान राम ने उन्हें कभी उनकी सेवा का मौका नहीं दिया और मैं आपको भारत भ्रमण कराने में मदद करूंगा। इसके लिए महादेव और बालाजी तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी थी कि जहां कहीं भी कावड़ जमीन पर टिकेगी वे वहीं रूक जाएंगे। 

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शर्त के मुताबिक 8 कोस लंबी कावड़ में एक ओर महादेव और दूसरी तरफ पलड़े में बालाजी को बिठा लिया। यात्रा चलती रही, लेकिन कनकपुरी कैथून में भी किसी कारण से विभीषण को रूकना पड़ गया था। एक पलड़ा चारचौमा गांव में टिका था, जहां महादेव विराजमान हो गए।

दूसरा रंगबाड़ी में टिका जहां बालाजी विराजमान हो गए, इन दोनों स्थानों पर भगवान शिव और बालाजी के मंदिर धार्मिक स्थान बने हुए है। दोनों जगहों के बीच जहां कावड़ा रूकी थी वहीं विभीषण ठहर गए और इसी स्थान पर विभीषण का प्राचीन मंदिर स्थापित किया गया। 
 
प्रतिभा का नजर आता है केवल शीश

मंदिर समिति से जुड़े सत्यनारायण सुमन और सत्येन्द्र शर्मा ने बताया कि इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का केवल शीश दिखाई पड़ता है। मंदिर से लगभग 150 फीट की दूरी पर कुंड भी बने हुए है। जहां माना जाता है कि विभीषण के पैर है, ग्रामीणों के मुताबिक हर साल एक मूंग के दाने के बराबर यह मूर्ति जमीन में समाती जा रही है।