Salasar Balaji Mandir: राजस्थान के चूरू में बालाजी भगवान का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे सालासर बालाजी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बहुत दूर- दूर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर की मूर्ति शालिग्राम पत्थर की है, जिसे सिंदूरी रंग और सोने से सजाया जाता है। दिन में कई बार इनके कपड़े बदले जाते हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां भगवान से पहले उनके भक्त की पूजा की जाती है।
क्या है मान्यता
इस मंदिर की मान्यता है कि भक्त पहले मोहनदास जी के दर्शन करते हैं और फिर बालाजी के दर्शन करते हैं। जिस दिन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी, उसी दिन से यहाँ अखण्ड ज्योति जल रही है। इस मंदिर के पास ही श्री राम जी का मंदिर भी है, जो भक्त हनुमान जी के दर्शन करने सालासर बालाजी जाते हैं, वे श्रीराम के दर्शन भी करते हैं। श्रीराम के दर्शन के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
मंदिर का इतिहास
अगर चूरू के सालासर बालाजी मंदिर के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि इस मंदिर में बालाजी ने अपने परम भक्त मोहनदास को दाढ़ी- मूछों वाले रूप में दर्शन दिए थे। यहाँ मोहनदास जी की समाधि भी है। इसके पीछे एक कथा भी प्रचलित है- कहा जाता है कि राजस्थान के एक गाँव असोता में एक दिन अचानक खेत में जुताई करते हुए किसान को मिट्टी से सनी हुई हनुमान जी की मूर्ति मिली। उस दिन शनिवार का दिन था और श्रावण महीने की नवमी तिथि। किसान ने इस घटना के बारे में सब लोगों को बताया।
मोहनदास को आया सपना
कहा जाता है कि असोता के जमींदार को सपना आया कि हनुमान जी की इस मूर्ति को सालासर मे मंदिर बनाकर स्थापित करो। ठीक उसी दिन सालासर के निवासी मोहनदास को सपना आया कि असोता गाँव में हनुमान जी की एक मूर्ति मिली है, उसे असोता से लाकर सालासर में स्थापित करो।
स्थापित ही बालाजी की मूर्ति
जब भक्त मोहनदास असोता के जमींदार के पास पहुंचे और उन्होंने अपने सपने के बारे में जमींदार को बताया तो जमींदार चौंक गया। उसने भी अपने सपने के बारे में भक्त मोहनदास को बताया। भगवान के आदेश के अनुसार मंदिरों बनाकर सालासर में खेत से निकली हुई भगवान बालाजी की मूर्ति स्थापित कर दी गयी।
भगवान से पहले भक्त की पूजा
मोहनदास भगवान बालाजी के बहुत बड़े भक्त थे, इसलिए उनकी समाधि भी इसी मंदिर मे बनाई गयी। भक्त भगवान के दर्शन करने से पहले उनके परम भक्त मोहनदास जी के दर्शन करते हैं। उन्होंने यहाँ पर एक अग्नि कुंड भी जलाया था, जिसकी धूनी आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि इस कुंड की धूनी से अब दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं।